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दंसिज्जंति
परुविज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति ।
सेत्तं गंडियाओगे ?
४३. से कि तं चूलियानो ?
चूलिया - श्राइल्लारणं चउन्हेंपुव्वाणं चूलियाओ, सेसाई पुन्वाई अचूलियाई ।
सेत्तं चूलिया ।
४४. दिट्टिवायरस गं परिता वायणा संखेज्जा श्रणुओोगदारा संखेज्जाश्री पडिवत्तोश्री संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाश्रो निज्जत्ती संखेज्जायो
संगहणी ।
सेणं अंगाए बारसमे अंगे एगे सुखंधे चोट्स पुन्वाई संखेज्जा वत्यू संखेज्जा चूलवत्थू संखेज्जा पाहुडा संखेज्जा पाहुडपाहुजा संखेज्जाश्रो पाहुडिया संखेज्जा पाहुडपाहुडिया संखेज्जाणि पयसयसहस्साणि पयग्गेणं, संखेज्जा श्रवरा श्रणंता गमा अनंता पज्जवा ।
परिता तसा श्रणंता थावरा सासया कडा णिवद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ता भावा श्राघविज्जंति परगविज्जंति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसि
समवाय-सुतं
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है, निदर्शन किया गया है, उपदर्शन किया गया है ।
यह है वह कंडिकानुयोग |
४३. वह चूलिका क्या है ?
प्रथम चार पूर्वो में चूलिकाएं हैं, शेप पूर्वी में चूलिकाएँ नही हैं ।
यह है वह चूलिका ।
४४. दृष्टिवाद की वाचनाएँ परिमित हैं, अनुयोगद्वार संख्येय हैं, प्रतिपत्तियां संख्येय हैं, वेष्टन संख्येय हैं, श्लोक संख्येय हैं, नियुक्तियां संख्येय हैं, संग्रहरिणयाँ संख्येय हैं ।
यह अंग की अपेक्षा से बारहवां अंग है । इसके एक श्रुतस्कन्ध, चौदह पूर्व, संख्येय वस्तु, संख्येय चूलिका वस्तु, संख्येय प्राभृत, संख्येय प्राभृत-प्राभृत, संख्येय प्राभृतिका, संख्येय प्राभृत- प्राभृतिका, पद - प्रमारण से संख्येय शत - सहस्र / लाख पद, संख्येय अक्षर, अनन्त गम और अनन्त पर्याय है ।
इसमें परिमित त्रस जीवों, अनन्त स्थावर जीवों तथा शाश्वत, कृत, निवद्ध और निकाचित जिनप्रज्ञप्त भावों का आख्यान किया गया है, प्रज्ञापन किया गया है,
समवाय-द्वादशांग