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७. मज्झिम - मज्झिम - गेवेज्जयाणं
देवाणं जहणणं छन्वीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता।
७. मध्यवर्ती-मध्यम अवेयक देवों की जघन्यतः/न्यूनतः छब्बीस सागरोपम स्थिति प्राप्त है।
८. जे देवामज्झिम-हेछिम-गेवेज्जयविमाणेसु देवत्ताए उववण्णा, तेसि रणं देवाणं उक्कोसेणं छव्वीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।
८. जो देव मध्यवर्ती-अधस्तन ग्रैवेयक विमान में देवत्व से उपपन्न हैं, उन देवों की उत्कृष्टतः छब्बीस सागरोपम स्थिति प्रजप्त है।
६.ते णं छच्चीसाए अद्धमासाणं
प्राणमति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा ।
६. वे देव छब्बीस अर्घमासों/पक्षों में
आन/आहार लेते हैं, पान करते हैं, उच्छ्वास लेते हैं, निःश्वास छोड़ते
१०. तेसि गं देवाणं छव्वीसाए वास-
सहस्सेहिं प्राहारळे समुप्पज्जइ।
१०. उन देवों के छब्बीस हजार वर्षों में
आहार की इच्छा समुत्पन्न होती है।
११. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे
छब्बीसाए भवग्गहणेहि सिम्झिस्संति वुज्झिस्संति मुच्चिस्संति परिनिन्वाइस्संति करिस्संति ।
११. कुछेक भव-सिद्धिक जीव हैं, जो
छब्बीस भव ग्रहण कर सिद्ध होंगे, वुद्ध होंगे, मुक्त होंगे, परिनिर्वृत होंगे, सर्वदुःखान्त करेंगे।
4 -सुत्तं
समवाय-२६