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बायालीसइमो समवाश्रो
१. समणे भगवं महावीरे बायालीसं वासाई साहियाई सामण्णपरियागं पाउणित्ता सिद्धे-बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिव्वडे सन्वदुक्खवहीणे ।
२. जंबुद्दीवस्स गं दीवस्स पुरस्थि - मिल्लाश्रो चरिमंताओ गोथूभस्स रणं आवासपव्वयस्स पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते, एस गं वायालीसं जोयणसहस्साइं प्रवाहए अंतरे पत्ते ।
३. एवं चउद्दिसि पि दोभासे संखे दयसीमे य ।
४. कालोए गं समुद्दे वायालीसं चंदा जोईसु वा जोइंति वा जोइस्संति वा वायालीसं सूरिया भासिसु वा पभासिति वा पभासिस्संति वा ।
५. संमुच्छिमभूयपरिसप्पारणं उक्को - सेणं बायालीसं वाससहस्साई ठिई पण्णत्ता ।
६. नामे णं कस्मे वायालीसविहे पण्णत्ते, तं जहा ---- गइनामे जाइनामे सरीरनामे
समवाय-सुतं
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बयालीसवां समवाय
१. श्रमरण भगवान् महावीर बयालीस से कुछ अधिक वर्षों तक श्रामण्यपर्याय पाल कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, अन्तकृत, परिनिर्वृत तथा सर्व दुःखरहित हुए ।
२. जम्बूद्वीप- द्वीप के पूर्वी चरमान्त से गोस्तूप आवास पर्वत के पश्चिमी चरमान्त का अन्तर अवाधतः वयालीस हजार योजन प्रज्ञप्त है ।
३. इसी प्रकार चारों दिशाओं में भी उदकभास-शंख और उदकसीम का [ अन्तर ज्ञातव्य है । ]
४. कालोद समुद्र में बयालीस चन्द्रमात्र ने उद्योत किया था, करते हैं और करेंगे । इसी प्रकार बयालीस सूर्यो ने प्रकाश किया था, प्रकाश करते है और प्रकाश करेंगे ।
५. सम्मूच्छिम भुजपरिसर्प की उत्कृष्टतः वयालीस हजार वर्ष की स्थिति प्रज्ञप्त है ।
६. नाम कर्म बयालीस प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे कि ---
गतिनाम, जातिनाम, शरीरनाम,
समवाय- ४२