________________
७६. धायइसंडे गं दोवे चत्तारि
जोयणसयसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं पण्णते।
७६. घातकीखण्ठ द्वीप का शत-सहस्र ।
चार लाख योजन का चक्रवालविष्कम्भ प्रज्ञप्त है।
५०. लवणस्स णं समुदस्स पुरस्थि
मिल्लामो चरिमंताओ पच्चथिमिल्ले चरिमंते, एस गं पच जोयणसयसहस्साई अबोहाए पण्णत्ते। अंतरे पण्णते।
८०. लवरण समुद्र के पूर्वी चरमान्त से
पश्चिमी चरमान्त का अवाघतः अन्तर पांच रात-सहस्र/लाख योजन प्रज्ञप्त है।
८१. भरहे णं राया चाउरंतचक्क
वट्टी छ पुथ्वसयसहस्साई रायमझावसित्ता मुंडे भवित्ता प्रागाराप्रो अणगारियं पन्वइए ।
८१. चातुरन्त चक्रवर्ती राजा भरत ने
छह शत-सहस्र लाख पूर्वी तक राज्य-मध्य रह कर, मुड होकर, अगार से अनगार प्रव्रज्या ली।
८२. जंबूदीवस्स णं दीवस्स पुरस्थिमिल्लायो वेइयंताओ धायइसंडचवकवालस्स पच्चथिमिल्ले चरिमंते, एस गं सत्त जोयणसयसहस्साई प्रवाहाए अंतरे पण्णत्ते।
०२. जम्बूद्वीप द्वीप की पूर्वी वेदिका के
चरमान्त से घातकीखंड के चक्रवाल के पश्चिमी चरमान्त का अवाधतः अन्तर सात शत-सहस्रलाख योजन प्राप्त है।
५३. माहिदे णं कप्पे अट्ट विमाणा-
वासमयसहस्साइं पण्णत्ताई।
८३. माहेन्द्र कल्प में आठ शत-सहस्र |
लाख विमान प्रजप्त हैं।
८४. अजियस्स णं अरहो साइरे
गाई नव मोहिनाणिसहस्साई होत्या।
८४. अर्हत् अजित के नौ हजार से
अधिक अवधिजानो थे।
८५. पुरिससीहे णं वासुदेवे दस
वाससयसहस्साई · सव्वाउयं पालइत्ता पंचमाए पुढवीए नरएसु नेरदत्ताए उववणे ।
८५. वासुदेव पुरुपसिंह दश शत-सहस्र/
लाख वर्ष की सर्वायु पाल कर, पांचवीं पृथिवी के नरकों में
नैरयिकत्व से उपपन्न हुए। २१७
समवाय-शतात्तर
समवाय-सुत्त