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दस धम्मकारणं वग्गा । तत्थ णं एगमेगाए धम्मकहाए पंचपंच प्रक्वाइयासयाई । एगमेगाए प्रक्वाइयाए पंच-पंच उववखाइयासयाई । एगमेगाए उवक्खाइयाए पंच-पंच श्रवखाइय-उवक्वाइयसयाइं - एवामेव सपुव्वावरे श्रद्धद्वाश्रो श्रक्खाइयकोडीश्रो भवतीति मक्खा - याश्रो । एगूरणतीसं उद्द सणकाला एगूणतीसं समुद्द सरणकाला संखेज्जाई पयसयसहस्साई पयग्गेणं, संखेज्जा, श्रवखरा श्रणंता गमा श्रणंता पज्जवा ।
परिता तसा प्रणंता थावरा सासया कडा णिबद्धा णिकाइया जिण्णपण्णत्ता भावा श्राधविज्जंति पण्णविज्जति परुविज्जंति दंसिज्जंति निदंसिज्जंति उवदंसिज्जति ।
से एवं श्राया एवं णाया एवं विष्णाया एवं चररण- करणपरूवणया श्राघविज्जति पण्णविज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदसि - ज्जति ।
सेतं णायाधम्मका ।
८. से किं तं उवासगदसा ?
समवाय-सुतं
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धर्मकथा के दस वर्ग हैं। एक-एक धर्मकथा में पांच-पांच सौ प्राख्यायिकाएँ हैं। एक-एक आख्यायिका में पांच-पांच सौ उप- श्राख्यायिकाएँ हैं। एक-एक उप-प्राख्यायिका में पांच-पांच सौ आख्यायिक - उपाख्यायिकाएँ हैं । इस प्रकार कुल मिला कर साढ़े तीन करोड़ आख्यायिकाएँ हैं- ऐसा कहा है । इसमें उनतीस उद्देशन - काल, उनतीस समुद्देशन-काल, पद-प्रमाण से संख्येय शत - सहस्र / लाख पद संख्येय अक्षर, अनन्त गम / अर्थ / धर्म और अनन्त पर्याय हैं ।
इसमें परिमित त्रस जीवों, अनन्त स्थावर जीवों तथा शाश्वत, कृत, निवद्ध और निकाचित जिन- प्रज्ञप्त भावों का आख्यान किया गया है, प्रज्ञापन किया गया है, प्ररूपण किया गया है, दर्शन किया गया है, निदर्शन किया गया है, उपदर्शन किया गया है ।
यह आत्मा है, ज्ञाता है, विज्ञाता है, इस प्रकार इसमें चरण-कररणप्ररूपणा का आख्यान किया गया है प्रज्ञापन किया गया है, प्ररूपरण किया गया है, दर्शन किया गया है, निदर्शन किया गया है, उपदर्शन किया गया है ।
यह है वह ज्ञात-धर्मकथा |
८. वह उपासकदशा क्या है ?
समवाय- द्वादशांग