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आउखएणं चुया समारणा जह जिणमयम्मि बोहि लक्षण य संजमुत्तमं, तमरयोविप्पमुवका उर्वति जह अक्खयं सव्वदुक्खमोक्खं ।
अनुपम सुखों को क्रमशः भोगकर आयु क्षीण होने पर वहां से च्युत होकर जिस प्रकार जिनमत में बोधि और उत्तम संयम को प्राप्त करते हैं तथा तम और रज के प्रवाह से विप्रमुक्त होकर जिस प्रकार अक्षय और सब दुःखों से मोक्ष प्राप्त करते हैं-उसका आख्यान है। ये तथा इसी प्रकार के अन्य अर्थ इसमें विस्तार से हैं। उपासकदशा की वाचनाएं परिमित हैं, अनुयोगद्वार संख्येय हैं, प्रतिपत्तियां संख्येय हैं, वेप्टन संख्येय हैं, श्लोक संख्येय हैं, नियुक्तियां संख्येय हैं, संग्रहरिणयां संख्येय
एते अण्णे य एवमाइअत्था वित्थरेण य। उवासगदसासु णं परित्ता वायणा सखेज्जा अणुनोगदारा संखेज्जाम्रो पडिवत्तीमो सखेज्जा सिलोगा संखेज्जानो निज्जुत्तीओ सखेज्जाओ संगहणीयो। से गं अंगट्टयाए सत्तमे अंगे एगे सुयक्खंघे दस अज्झयणा दस उद्देसणकाला दस समुद्देसणकाला संखेज्जाइं पयसयसहस्साई पयग्गेणं, संखेज्जाइं अक्सराई अणंता गमा अणंता पज्जवा।
परित्ता तसा अणंता थावरा सासया कडा णिबद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ताभावाप्राधविज्जति पण्णविज्जंति परूविजंति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिउजति । .
यह अंग की अपेक्षा से सातवां अंग है। इसके एक श्रुतस्कन्ध, दस अध्ययन, दस उद्देशन-काल, दस समुद्देशन-काल, पद-प्रमाण से संख्येय शत-सहस्र लाख पद, संख्येय अक्षर, अनन्त गम और अनन्त पर्याय हैं । इसमें परिमित स जीवों, अनन्त स्थावर जीवों तथा शाश्वत, कृत, निवद्ध और निकाचित जिन-प्रज्ञप्त भावों का आख्यान किया गया है, प्रज्ञापन किया गया है, प्ररूपण किया गया है, दर्शन किया गया है, निदर्शन किया गया है, उपदर्शन किया गया है।
समवाय-मुत्त
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समवाय-द्वादशांग