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परित्ता तसा अणंता थावरा सासया फडा णिवद्धा रिएकाइया जिणपण्णत्ता भावा प्राघविज्जति पणविज्जति परूविज्जति दसिज्जति निदसिज्जति उवदसिज्जति ।
इसमें परिमित बस जीवों, अनन्त स्थावर जीवों तथा शाश्वत, कृत, निवद्ध और निकाचित जिन-प्रजप्त भावों का पाख्यान किया गया है, प्रज्ञापन किया गया है, प्ररूपण किया गया है, दर्शन किया गया है, निदर्शन किया गया है, उपदर्शन किया गया है।
से रणं पाया एवं गाया एवं यह आत्मा है, ज्ञाता है, विज्ञाता विण्णाया एवं चरण - फरण
है, इस प्रकार चरण-करण-प्ररूपरूवणया प्राधविज्जति पण्ण
पणा का इसमें आख्यान किया विज्जति परूविज्जति दंसि- गया है, प्रज्ञापन किया गया है, ज्जंति निदंसिज्जति उवदंसि- प्ररूपण किया गया है, दर्शन किया ज्जति ।
गया है, निदर्शन किया गया है,
उपदर्णशन किया गया है। सेत्तं विवागसुए।
यह है वह विपाकश्रुत । १३. से कि तं दिट्ठिवाए ?
१३. वह दृष्टिवाद क्या है ? दिद्विवाए णं सव्वभावपरू- दृष्टिवाद में सर्व भाव प्ररूपणा वणया प्राधविज्जति । से समा- का आख्यान है । वह संक्षेप में पांच सो पंचविहे पण्णत्ते, तं प्रकार का प्रज्ञप्त है । जैसे किजहा
१. परिकर्म, २. सूत्र, ३. पूर्वगत, परिकम्मं सुत्ताई पुत्वगयं ४. अनुयोग, ५. चूलिका।
अणुप्रोगे चूलिया। १४. से किं तं परिकम्मे ?
१४. वह परिकर्म क्या है ? परिकम्मे सत्तविहे पण्णते, परिकर्म सात प्रकार का प्रज्ञप्त तं जहा
है, जैसे किसिद्धसेणिया-परिकम्मे
१. सिद्धश्रेणिका परिकर्म मणुस्ससेरिणया-परिकम्मे
२. मनुष्यश्रेणिका परिकर्म पुट्ठसेणिया-परिकम्मे
३. स्पृष्टश्रेरिणका परिकर्म प्रोगाहणसेरिणया-परिफम्मे
४. अवगाहनश्रेणिका परिकर्म उवसंपज्जरासेणिया-परिकम्मे
५. उपसंपादनश्रेरिणका परिकर्म समवाय-मुत्तं
२४५।
समवाय-द्वादशांग
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