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परिणयापरिणयं,
उज्जुगं, बहुभंगियं, विजयचरियं श्ररणं
तरं, परंपरं, सामाणं, संजू, भिण्णं, श्रहच्चायं, सोवथित्यं, घंटे, नंदावत्तं, बहुलं, पुट्ठापुट्ठे, विद्यावत्तं, एवंभूयं, दुश्रावत्तं, वत्तमाणुप्पयं, समभिरूढं, सन्वनोभद्दं, पण्णासं, दुपडि - हं ।
२४. इच्चेयाई बावीसं सुताई छिछ्रेयनइयाणि ससमयसुत्तपरिवाडीए ।
इच्याई बावीसं सुताई प्रच्छिण्णछेयनइयाणि श्राजी
विय सुत्तपरिवाडीए ।
इच्चेयाई बावीस सुत्ताई तिकनइयाणि तेरासियसुत्तपरिवाडीए ।
इच्चेयाइं बावीसं सुत्ताइं चउक्कनइयाणि ससमयसुत्तपरिवाडीए ।
एवामेव सपुव्वावरेणं श्रट्ठासीति सुत्ताई भवतीतिमवखायाणि ।
सेत्तं सुताई ।
२५. से कि तं पुत्र गए ?
पुव्वगए चउद्दसविहे पण्णत्ते, तं जहा-
समवाय-सुतं
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१. ऋजुक, २. परिणतापरिगत, ३. बहुभंगिक, ४. विजयचरित,
५. अनन्तर, ६. परम्पर, ७. सत्, ८. संयूथ, 8. भिन्न, १०. यथात्याग, ११. सौवस्तिक घंट, १२. नन्द्यावर्त, १३. बहुल, १४. पृष्टापृष्ट, १५. व्यावर्त, १६. एवंभूत, १७. द्विकावर्त, १८. वर्तमानपद, १६. समभिरूढ, २०. सर्वतोभद्र, २१. पन्न्यास, २२. द्विप्रतिग्रह |
२४. ये बाईस सूत्र स्व-समय- सूत्र की परिपाटी / परम्परा के अनुसार छिन्नछेदनयिक हैं ।
ये वाईस सूत्र आजोवक सूत्र की परिपाटी के अनुसार प्रच्छिन्नछेदनयिक हैं ।
ये वाईस सूत्र त्रैराशिक -सूत्र की परिपाटी के अनुसार त्रिक-नयिक हैं ।
ये बाईस सूत्र स्व-समय-सूत्र की परिपाटी के अनुसार चतुष्कनयिक हैं ।
इस प्रकार कुल मिलाकर ग्रट्ठासी सूत्र हैं ।
यह है वह सूत्र |
२५. वह पूर्वगत क्या है ?
पूर्वगत चौदह प्रकार का प्रज्ञप्त है । जैसे कि
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समवाय-द्वादशांग