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ग्राउ-वउ-वण्ण-रूच - जाइ कुल जम्म- श्रारोग - बुद्धि - मेहाविसेला मित्तजण सयणधण- घण्ण- विभव- समिद्धिसारबहुविहकाम
समुदयमिसेसा भोगुवभवाण सोक्वाण सुहविवागोत्तमे ।
अणुवरयपरंपराणुवद्धा असुभाण सुभाण चैव कम्माण भासिया बहुविहा विवागा विवागस्य म्मि भगवया जिणवरेण संवेगकारणत्या |
वि य एवमाइया, बहुविहा वित्यरेणं प्रत्यपरूवणया आधविज्जति ।
विवागसुस परिता वायगा सखेज्जा अणुग्रोगदारा संखेज्जा पडिवत्तीयो सखेज्जा वेढा संसेज्जा सिलोगा संखेज्जाश्रो निज्जत्ती संसेज्जाओ
संगहो ।
से णं गट्टयाए एक्कारनमे अंगे वीसं प्रक्रयणा वीसं उद्देसणकाला वोसं समुद्देसणकाला संखेज्जाई पयलय सहस्साई पयगेणं, संसेज्जाई श्रवखराड प्रणता गमा, श्रणंता पज्जवा ।
समवाय-सुन
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मनुष्य-लोक में आकर आयु, शरीर, वर्ण, रूप, जाति, कुल, जन्म, आरोग्य, वुद्धि और मेवा विशेष, मित्रजन, स्वजन, वनवान्य, वैभव, समृद्धि, सार-समुदय - विशेष तथा बहुविध कामभोगों से उद्भुत सुखों को उत्तम शुभ विपाक वाले जीव प्राप्त करते हैं— उनका ग्राख्यान है ।
संवेग / वैराग्य उत्पन्न करने के लिए भगवान् जिनवर द्वारा परम्परा से अनुवद्ध एवं अनुपरत अशुभ और शुभ कर्मों के बहुविध विपाक विपाकश्रुत में भापित हैं ।
ये तथा इसी प्रकार के अन्य बहुविध अयं इसमें विस्तार से आस्यान किये गये हैं ।
विपाकश्रुत की वाचनाएँ परिमित हैं, अनुयोगद्वार संख्येय हैं, प्रतिपत्तियां संख्येय हैं, वेष्टन संख्येय हैं, श्लोक संख्येय हैं, नियुक्तियां संख्येय हैं, संग्रहरिणयां संख्येय हैं ।
यह ग्रङ्ग की अपेक्षा से ग्यारहवां अंग है । इनके वीस अध्ययन, बीस उद्देशन-काल, वीस ममुद्देशन - काल पद - प्रमाण ने संख्य शत-सहन / लाख पद, संख्येय अक्षर, अनन्त गम और अनन्त पर्याय हैं।
समवाय-द्वादगांग