Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

View full book text
Previous | Next

Page 264
________________ ग्राउ-वउ-वण्ण-रूच - जाइ कुल जम्म- श्रारोग - बुद्धि - मेहाविसेला मित्तजण सयणधण- घण्ण- विभव- समिद्धिसारबहुविहकाम समुदयमिसेसा भोगुवभवाण सोक्वाण सुहविवागोत्तमे । अणुवरयपरंपराणुवद्धा असुभाण सुभाण चैव कम्माण भासिया बहुविहा विवागा विवागस्य म्मि भगवया जिणवरेण संवेगकारणत्या | वि य एवमाइया, बहुविहा वित्यरेणं प्रत्यपरूवणया आधविज्जति । विवागसुस परिता वायगा सखेज्जा अणुग्रोगदारा संखेज्जा पडिवत्तीयो सखेज्जा वेढा संसेज्जा सिलोगा संखेज्जाश्रो निज्जत्ती संसेज्जाओ संगहो । से णं गट्टयाए एक्कारनमे अंगे वीसं प्रक्रयणा वीसं उद्देसणकाला वोसं समुद्देसणकाला संखेज्जाई पयलय सहस्साई पयगेणं, संसेज्जाई श्रवखराड प्रणता गमा, श्रणंता पज्जवा । समवाय-सुन २८८ मनुष्य-लोक में आकर आयु, शरीर, वर्ण, रूप, जाति, कुल, जन्म, आरोग्य, वुद्धि और मेवा विशेष, मित्रजन, स्वजन, वनवान्य, वैभव, समृद्धि, सार-समुदय - विशेष तथा बहुविध कामभोगों से उद्भुत सुखों को उत्तम शुभ विपाक वाले जीव प्राप्त करते हैं— उनका ग्राख्यान है । संवेग / वैराग्य उत्पन्न करने के लिए भगवान् जिनवर द्वारा परम्परा से अनुवद्ध एवं अनुपरत अशुभ और शुभ कर्मों के बहुविध विपाक विपाकश्रुत में भापित हैं । ये तथा इसी प्रकार के अन्य बहुविध अयं इसमें विस्तार से आस्यान किये गये हैं । विपाकश्रुत की वाचनाएँ परिमित हैं, अनुयोगद्वार संख्येय हैं, प्रतिपत्तियां संख्येय हैं, वेष्टन संख्येय हैं, श्लोक संख्येय हैं, नियुक्तियां संख्येय हैं, संग्रहरिणयां संख्येय हैं । यह ग्रङ्ग की अपेक्षा से ग्यारहवां अंग है । इनके वीस अध्ययन, बीस उद्देशन-काल, वीस ममुद्देशन - काल पद - प्रमाण ने संख्य शत-सहन / लाख पद, संख्येय अक्षर, अनन्त गम और अनन्त पर्याय हैं। समवाय-द्वादगांग

Loading...

Page Navigation
1 ... 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322