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उपासकदशा में उपासकों के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखंड, राजा, मातापिता, समक्सरण, धर्माचार्य, धर्मकथा, ऐहलौकिक-पारलौकिकऋद्धि-विशेष, शीलवत, विरमण, गुरगवत, प्रत्याख्यान, पौषधोपवास, श्रुत-परिग्रहण, तप-उपधान, प्रतिमा, उपसर्ग, संलेखना, भक्तप्रत्याख्यान, प्रायोपगमन, देवलोकगमन, सुकुल में पुनर्जन्म, पुनः बोधिलाम और अन्तक्रिया का आल्यान किया गया है।
उवासगदसासु णं उवासयाणं नगराई उज्जाबाई चेइमाई वणसंडाई रायाणो अम्मापियरो समोसरणाई धम्मायरिया धम्मकहानो इहलोइय-परलोइया इडिविसेसा, उवासयाणं य सीलव्वय-वेरमण-गुरण-पच्चक्खाण-पोसहोववास-पडिवज्जणयानो सुयपरिग्गहा तवोवहाणाई पडिमाओ उवसग्गा संलेहणायो भत्तपच्चक्खाणाई पायोवगमणाई देवलोगगमणाई सुकुलपच्चायाई पुण बोहिलाभो अंतकिरियायो य प्राघविज्जति । उवासगदसासु णं उवासयाणं रिद्धिविसेसा परिसा वित्यरधम्मसवणाणि वोहिलाभ-अभिगमसम्मत्तविसुद्धया यिरत्तं मूलगुण-उत्तरगुणाइयारा लिइविसेसा य बहुविसेसा पडिमाभिग्गहगहरण-पालणा उवसग्गाहियासणा हिरवागाय, तवाय विचित्ता, सीलन्वयवेरमण-गुणपच्चक्साण-पोमहोववाला, अपन्छिममारगंतियऽयसलेहणाभोसणाहि-अप्पाणं जह य भावइत्ता, वहूणि भत्ताणि अणसरगाए य छेयत्ता उववण्णा फप्पवर विमाणूत्तनेमु जह ऋणुभवंति सुरवरविमाण-वरपोंडरीएसु सोपसाई प्रणीव माई
कमेण भोत्तण उत्तमाई, तो ^, समाव-गुत्त
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उपासकदशा में उपासकों के ऋद्धिविशेष, परिषद्, विस्तृत धर्म-श्रवण, वोषि-लाभ, अभिगम, सम्यक्त्वविशुद्धि, स्थिरता, मूलगुणों और उत्तरगुणों के अतिचार, स्थितिविशेप, विविध विशिष्ट प्रतिमानों तथा अभिग्रहों का ग्रहण और पालन, उपसर्ग-सहन, निरुपसर्गता, विचित्र तप, भीलव्रत, विरमगा, गुणव्रत, प्रत्याख्यान, पौपचोपवास, अपश्चिम-मारणान्तिक आत्मसंलग्बना के मेवन से प्रात्मा को जिस प्रकार भावित करते हैं तथा अनेक भक्तों/भोजन-समयों का अनशन के रूप में छेदन कर उत्तम कल्प देवलोक के विमानों में उपपन्न होकर जिम प्रकार वरपुंटरिक तुल्य तुरवर-विमानों में
समवाय-द्वादशांग