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से एवं प्राया एवं गाया एवं विष्णाया एवं चररण-कररणपरूवणया प्राघविज्जंति पण्णविज्जति परुविज्जति दसिज्जंति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति ।
सेत्तं उवासगदसानो ।
६. से कि तं अंतगडदसा ? अंतगडदसा गं अंतगडाणं नगराई उज्जाणाई चेइयाई वणसंडाई राम्राणो श्रम्मापियरो समोसरणाई धम्मायरिया महाश्र इहलोइप-परलोइया इड्ढिविसेसा भोगपरिचचाया पव्वज्जाश्रो सुयपरिग्गहा तवोवहाणाइं पडिमात्रो वहुविहाश्रो, खमा प्रज्जवं मद्दव च, सोय सच्चमहियं, सत्तरसविहो य संजमो, उत्तमं च वंमं, श्राकिचणया तवो चियाश्रो समिइगुत्तीग्रो चेव, तह अप्पमायजोगो, सज्झायज्झाणाण व उत्तमाणं दोपि लक्खणाई |
पताण य संजमुत्तमं जियपरीसहाणं चकिम्म सम्म जह केवलस्स लंभो, परियात्री जतिम्रो य जह पालिश्री मुणिहि, पायोवगग्रो य जो जहि, जत्तियाणि भत्ताणि छेपइत्ता अंतगठो मुनिवरो तम
गमवान-वृतं
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यह आत्मा है, ज्ञाता है, विज्ञाता है, इस प्रकार इसमें चरण-करणप्ररूपणा का आख्यान किया गया है, प्रज्ञापन किया गया है, प्ररूपरण किया गया है, दर्शन किया गया है, निदर्शन किया गया है, उपदर्शन किया गया है ।
यह है वह उपासकदशा ।
C. वह अन्तकृतदशा क्या है ?
अन्तकृतदशा में ग्रन्तकृत / तद्भव मोक्षगामी जीवों के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखण्ड, राजा, माता-पिता, समवसरण, धर्माचार्य, धर्मकथा, ऐहलौकिक पारलौकिक - ऋद्धिविशेष, भोग- परित्याग, प्रव्रज्या, श्रुत - परिग्रहरण, तप-उपधान, बहुविध प्रतिमाएँ, क्षमा, आर्जव, मार्दव, शौच, सत्य, सतरह प्रकार का संयम, उत्तम ब्रह्मचर्य, ग्राकिंचन्य, तप, त्याग, दान, समिति, गुप्ति, श्रप्रमादयोग तथा उत्तम स्वाध्याय और व्यान -- इन दोनों के लक्षण निरूपित हैं ।
इनमें उत्तम संयम प्राप्त करने पर, पोप जीतने पर चतुविध कर्मनय होने से जिस प्रकार कैवल्य की प्राप्ति होती है, जिस प्रकार मुनियों ने जितने पर्यायों का पालन किया, जिन्होंने प्रायोपगमन अनशन किया तथा जितने भक्तों / भोजन
समवाय-द्वादशांग