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११. से किं तं पण्हावागरणाणि ?
पण्हावागरणेसु अठ्ठत्तरं पसिणसयं अठ्ठत्तरं अपसिणसयं अठ्ठतरं पसिणापसिणसयं विज्जाइसया, नागसुवर्णोहि सद्धि दिवा संवाया पाविज्जति ।
११. वह प्रश्नव्याकरण क्या है ?
प्रश्नव्याकरण में एक सौ आठ प्रश्न, एक सौ आठ अप्रश्न, एक सौ आठ प्रश्न-अप्रश्न, विद्यातिशय तथा नाग और सुपर्ण देवों के साथ हुए दिव्य संवादों का आख्यान है।
पण्हावागरणदसासु गं ससमयपरसमय-पण्णवय - पत्तेयवुद्धविविहत्य - भासा - भासियाणं अतिसय-गुण • उवसम - पाणप्पगार - पायरिय - भासियारणं वित्थरेणं वीरमहेसीहि विविहवित्थर-भासियाणं च जगहियाणं अदागंगृढ-बाहु-असिमणि-खोम-प्रातिच्चमाइयाणं विविहमहापसिणविज्जा - मणपसिणविज्जा-देवयपयोगपहाणगुणप्पगासियाणं सन्भूयविगुणप्पभाव - नरगणमइ - विम्हयकारीणं अतिसयमतीय - कालसमए दमतित्थकरुत्तमस्स ठिइकरण-कारणाणं दुरहिगमदुरवगाहस्स सव्वसवण्णुसम्मयस्स वुहजणविबोहकरस्स पच्चक्खय-पच्चय-करणं-पण्हाणं विविहगुणमहत्था जिणवरप्पणीया श्राविति ।
प्रश्नव्याकरण में स्वसमय-परसमय के प्रज्ञापक प्रत्येकबुद्धों द्वारा विविध अर्थवाली भाषा में भापित, विविध प्रकार के अतिशय, गुण
और उपशम वाले प्राचार्यो द्वारा विस्तार से कथित तथा वीर महपियों द्वारा विविध विस्तार से भाषित जगत् के लिए हितकर, आदर्श, अंगुष्ठ, बाहु, असि, मणि, वस्त्र और आदित्य आदि से सम्बन्धित विविध प्रकार की महाप्रश्नविद्याओं और मनःप्रश्नविद्याओं के देवों के प्रयोग-प्राधान्य से गुणों को प्रकाशित करने वाली सद्भूत द्विगुण प्रभाव से मनुष्यगण की बुद्धि को विस्मित करने वाले, सुदूर अतीत काल में दमन/ प्रशान्ति प्रधान उत्तम तीर्थकर के स्थितिकरण में कारणभूत, दुर्योध, दुरवगाह तथा बुधजन को वोध देने वाले, सर्व सर्वज्ञ-सम्मत प्रत्यक्ष प्रत्यय कराने वाली प्रश्न-विद्याओं के, जिनवर-प्रणीत विविध गुण वाले महान् अर्थों का आख्यान किया गया है।
समवाय-सुत्तं
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समवाय-द्वादशांग