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वगमणाई देवलोगगमगाई सुकुलपच्चायाती पुणवोहिलाभो अंतकिरियानो य प्राविति पण्णविज्जति परूविज्जति निसिज्जति उवदंसिज्जति ।
पुनर्जन्म, पुन: वोधिलाभ और अन्तक्रिया का आल्यान किया गया है, प्रज्ञापन किया गया है, प्ररूपण किया गया है, दर्शन किया गया है, निदर्शन किया गया है, उपदर्शन किया गया है।
नाया-धम्मकहासु णं पवइयाणं विरण्यकरण-जिणसामिसासणवरे संजमपइण्ण-पालणधिइ-मइववसाय-दुल्लहाणं, तव-नियमतवोवहाण-रण-दुद्धरभर-मग्गाणिसहा-णिसट्टाणं, घोरपरीसहपराजिया - सह - पारद्ध-रुद्धसिद्धालयमग्ग • निग्गयाणं, विसयसुह - तुच्छयासावसदोसमुच्छियाणं, विराहिय-चरित्तनाए-दसण-जइगुण - विविहप्पगार-निस्सार-सुण्णयारणं संसारअपार-दुक्ख दुग्गइ-भव-विविहपरंपरा पवंचा।
जाताधर्मकथा में जिनेश्वर के विनयकरण/आचारनिष्ठ शासन में प्रवजित होने पर भी जो संयम की प्रतिज्ञा के पालन में दुर्लभ धृति, मति और व्यवसाय वाले हैं, तप, नियम, तप-उपधान रूपी संग्राम में दुर्घर भार से भग्न, निःसह, निःसृष्ट, घोर परीपहों से पराजित, प्रारव्य-रुद्ध, सिझालय/मोक्ष-मार्ग से निर्गत, विषय-सुखों की तुच्छ आशावश दोपों में मूच्छित, चारित्र, जान और दर्शन के मतिगुण के विराधक तथा विविध प्रकार की निस्सारता से शुन्य हैं, उनके संसार में होने वाले अपार दुःख, दुर्गति तथा भव जन्म की विविध परम्परा के प्रपञ्च की प्ररूपणा की गई है।
घोराण य जिय-परिसह-कसायसेण्ण - धिइ - धणिय - संजमउच्छाहनिच्छियाणं पाराहियनाण - देसण - चरित - जोगनिस्सल्ल-सुद्ध - सिद्धालयमग्गमभिमुहाणं सुरभवण-विमाणसुक्खाइ अणोवमाई मुत्तण चिरं य भोगभोगाणि ताणि दिव्वाणि महरिहाणि तो य पुणो
इसमें धीर-पुरुपों का, परीपह और कपायरूपी सेना के विजयी, धृति के धनी, संयम में निश्चित उत्साह रखने वाले, ज्ञान, दर्शन, चारित्र तथा योग के आराधक, निःशल्य और शुद्ध सिद्धालय के मार्ग के अभिमुख, अनुपम देव-भवन के वैमानिक मुखों को प्राप्त चिरकाल तक दिव्य और महामहनीय भोगों
समवाय-सुतं
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समवाय-द्वादशांग