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परित्ता तसा अयंता थावरा सासया कडाणिबद्धा रिएकाइया जिणपण्णत्ता भावा प्रायविति पपणविज्जति पविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति ।
इसमें परिमित स जीवों, अनन्त स्थावर जीवों तथा शाश्वत, कृत, निवद्ध और निकाचित जिन-प्रज्ञप्त भावों का आख्यान किया गया है, प्रज्ञापन किया गया है,प्ररूपण किया गया है, दर्शन किया गया है, निदर्शन किया गया है, उपदर्शन किया गया है। यह आत्मा है, ज्ञाता है, विज्ञाता है, इस प्रकार चरण-करण-प्ररूपणा का पाल्यान किया गया हैं, प्रजापन किया गया है, प्ररूपण किया गया है, दर्शन किया गया है, निदर्शन किया गया है, उपदर्शन किया गया है। यह है वह स्थान ।
से एवं पाया एवं णाया एवं चिण्णाया एवं चरण-करणपरूवरणया प्रायविज्जति पण्णविज्जति पलविज्नति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति।
लेतं ठाणे ।
५. से कि तं समवाए ?
समवाए णं ससमया सूइज्जति परसमया सूइज्जति ससमयपरसमया सूइज्जति जीवा सूइ. जंति अजीवा सूइज्जति जीवाजीव सूइज्जति लोगे सूइज्जति अलोगे सूइज्जति लोगालोगे सूइज्जति।
५. समवाय क्या है ?
समवाय में स्वसमय की सूचना दी गई है, परसमय की सूचना दी गई है, स्वसमय और परसमय की सूचना दी गई है। जीवों की सूचना दी गई है, अजीवों की मूचना दी गई है, जीव-अजीव की सूचना दी गई है, लोक की सूचना दी गई है। अलोक की मूचना दी गई है, लोक-ग्रलोक की सूचना दी गई है। समवाय में एकादिक अर्थों/पदार्थों को एकोतरिका की परिवृद्धि और द्वादशांग गरिपिटक का पल्लवान सार ज्ञापित है।
समवाए णं एकादियाणं एगल याणं एगुत्तरियपरिषदीय, दुवालसंगस्स य गणिपिडगस्स पल्लवग्गे समुणगाइज्जइ।
समवाय-गुतं
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समवाय-द्वादशांग