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संग्रहणियां संख्येय हैं।
ज्जानो निज्जुत्तीग्रो संखेज्जामो संगहणीयो। से गं अंगट्टयाए चउत्थे अंगे एगे अज्झयणे एगे सुयक्खंधे उद्देसणकाले एगे समुसणकाले एगे चोयाले पदसयसहस्से पदग्गेणं, संखेज्जाणि अक्खराणि प्रणंता गमा अणंता पज्जवा ।
परित्ता तसा अणंता थावरा सासया कडा णिवद्धा रिणकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति पण्णविज्जति परूविजंति देसिज्जति निदंसिज्जति उवदसिज्जति ।
यह अंग की अपेक्षा से चौथा अंग है। [इसके] एक अध्ययन, एक श्रुतस्कन्ध, एक उद्देशन-काल एक समुद्देशन-काल, पदप्रमाण से एक शत-सहस्र/लाख चौवालिस हजार पद, संख्येय अक्षर, अनन्त गम/ अर्थ/धर्म और अनन्त पर्याय हैं। इसमें परिमित त्रस जीवों, अनन्त स्थावर जीवों तथा शाश्वत, कृत, निवद्ध और निकाचित जिनप्रजप्त भावों का आख्यान किया गया है, प्रज्ञापन किया गया है, प्ररूपण किया गया है, दर्शन किया गया है, निदर्शन किया गया है, उपदर्शन किया गया है। यह आत्मा है, ज्ञाता है, विज्ञाता है, इस प्रकार इसमें चरण-करणप्ररूपणा का आख्यान किया गया है, प्रज्ञापन किया गया है, प्ररूपण किया गया है, दर्शन किया गया है, निदर्शन किया गया है, उपदर्शन किया गया है। यह है वह समवाय ।
से णं पाया एवं गाया एवं विण्णाया एवं चरण - करणपरूवणया प्रायविज्जति पण्णविज्जति परविज्जति दंसिज्जति निदसिज्जति उवदसिज्जति ।
सेतं समवाए।
६.ने कि तं वियाहे ? बियाहे णं ससमया वियाहिज्जति परसमया वियाहिज्जति सनमयपरसमया वियाहिज्जति जीवा वियाहिज्जंति अनीवा घियाहिज्जति जीवानीया
६. न्यान्या व्याख्याप्रनप्ति क्या है ? व्याख्या में स्वसमय की व्याख्या की गई है, परसमय की व्याख्या की
गई है, स्वसमय-परसमय की व्या__ ग्या की गई है। जीवों की व्याम्या
की गई है, अजीवों की व्याख्या की
गमत्राय-मुत्त
समवाय-हाटगांग