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ठाविज्जति अजीवा ठाविज्जति जीवाजीवा ठाविज्जति लोगे ठाविज्जति अलोगे ठाविज्जति लोगालोगे ठाविज्जति ।
ठाणे णं दव-गुण-खेत्त-कालपज्जव पयत्थाणंसेला सलिला य समुद्दसरभवरणविमाण प्रागर णदीनो। णिहमओ पुरिसज्जाया, सरा य गोत्ता य जोइसंचाला ॥
स्थापना की गई है। जीवों की स्थापना की गई है, अजीवों की स्थापना की गई है, जीव-अजीव
की स्थापना की गई है। लोक . की स्थापना की गई है, अलोक
की स्थापना की गई है, लोकअलोक की स्थापना की गई है । 'स्थान' में पदार्थों के द्रव्य, गुण, क्षेत्र, काल और पर्याय की, पर्वत, सलिला, समुद्र, सूर्य, भवन, विमान, आकर, नदी, निधि, पुरुष-जाति, स्वर, गोत्र, ज्योतिष्चक्र का संचार-इन सबका आकलन है। इसमें एक विध वक्तव्यता, द्विविध वक्तव्यता यावत् दश विध वक्तव्यता है। इसमें जीव, पुद्गल और लोकस्थायी [द्रव्यों] की प्ररूपणा
आख्यात है। स्थान की वाचनाएं परिमित हैं, अनुयोगद्वार संख्येय हैं, प्रतिप्रतियां संख्येय हैं, वेष्टन संख्येय हैं, श्लोक संख्येय हैं, नियुक्तियां संख्येय हैं, संग्रहणियां संख्येय हैं।
एक्कविहवत्तव्वयं दुविहवत्तव्वयं जाव दसविहवत्तन्वयं जीवाण पोग्गलाण य लोगट्ठाइणं च परूवयणा प्राधविज्जति ।
ठाणस्स णं परित्ता वायणा संखेज्जा अणु ओगदारा संखेज्जारो पडिवत्तीनो संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जामो निज्जुत्तीम्रो संखेज्जाम्रो संगहणीयो। से रणं अंगट्टयाए तइए अंगे एगे सुयक्खंधे दस अज्झयरणा एक्कवीसं उद्देसणकाला एक्कवीसं समुद्देसणकाला बावरि पयसहस्साइं पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा अरणंता गमा अवंता पज्जवा।
यह अंग की अपेक्षा से तीसरा अंग है। [इसके] एक श्रुतस्कन्ध, दस अध्ययन, इक्कीस उद्देशन-काल, इक्कीस समुद्देशन-काल, पद-प्रमाण से बहत्तर हजार पद, संख्येय अक्षर, अनन्त गम/अर्थ/धर्म और अनन्त पर्याय हैं।
समवाय -द्वादशांग
समवाय-सुत्त
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