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अलोगे सूइज्जति लोगालोगे सूइज्जति ।
सूयगडे णं जीवाजीव - पुण्णपावासव-संवर-निज्जर-बंधमोपखावसाणा पयत्था सूइजजंति । समगाणं अचिरकालपटवइयारणं कुसमयमोह - मोहमइमोहियाणं संदेहजाय - सहजबुद्धि-परिणामसंसाइयाणं पावकर - मइलमइगुणविसोहणत्यं पासोतस्स फिरियावादिसतस्स चउरासीए अफिरियवाईणं सत्तट्ठीए अण्णाणियवाईणं, बत्तीसाए वेणइयवाईणं-तिण्हं तेसटाणं अण्णदिट्टियसयाणं चूहं किच्चा ससमए ठाविज्जति ।
की सूचना दी गई है, जीवअजीव की सूचना दी गई है, लोक की सूचना दी गई है, अलोक की सूचना दी गई है, लोक-अलोक की सूचना दी गई है। सूत्रकृत में जीव, अजीव, पुण्य, पाप, प्रास्रव, संवर, निर्जरा, वन्ध और मोक्ष तक पदार्थों की सूचना दी गई है। इसमें नवदीक्षित श्रमणों के कुसमय/अन्यतीर्थिक मोह की मोहमति से मोहित, सन्देहजात, सहजबुद्धि के परिणाम के संशयित, पापकारी मलिन मतिगुण के विशोधन के लिए एक सौ अस्सी क्रियावादियों, चौरासी प्रक्रियावादियों, सड़सठ अज्ञानवादियों तथा बत्तीस वैनयिकवादियों-इस प्रकार तीन सौ तिरसठ अन्य दृष्टियों का व्यूह कर स्व-समय की स्थापना की गई है। विविध दृष्टान्तों एवं वचनों की निस्सारता को सम्यक् प्रकार से दर्शाया गया है। विविध विस्तारानुगम एवं परम सद्भाव-गुण से विशिष्ट, मोक्षपथ के अवतारक, उदार, अज्ञानअन्धकार के दुर्ग में दीपभूत और सोपान है। इसके सूत्रार्थ सिद्धिगति के उत्तम गृह के लिए क्षोभरहित एवं निष्प्रकम्प हैं।
णाणादिळंतवयण - रिणस्सारसुटू दरिसयंता।
विविहवित्यराणुगम - परमसटभाव-गुण - विसिट्ठा मोक्खपहोयारगा उदारा अण्णाणतमंधकारदुग्गेसु दीवभूता सोवाणा चेव। सिद्धिसुगइ घरत्तमस्स णिवखोभनिप्पकंपा सुत्तत्था।
समवाय-सुत्तं
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समवाय-द्वादशांग