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६. दक्खिणानो णं कट्ठामो सूरिए
दोच्चं छम्मासं अयमीणे एगूणपण्णासईममंडलगए अट्ठाणउइ एकसहिमागे मुहुत्तस्स रयणिखेत्तस्स अभिनिवुड्ढेत्ता गं सूरिए चारं चरइ। ७. रेवईपढमजेट्ठपज्जवसाणाणं एगणवीसाए नक्खत्ताणं अट्ठाणउई तारामो तारग्गेणं पण्णतायो।
६. सूर्य दक्षिण दिशा से दूसरे छह मास
तक उनचासवें मण्डल में रजनी-क्षेत्र का मुहूर्त के इकसठवें अट्ठानवें भाग ( मुहत) प्रमाण ह्रास और दिवस-क्षेत्र का इसी प्रमाण में अभिवर्धन करते हुए संचरण करता है।
७. रेवती नक्षत्र से ज्येष्ठा नक्षत्र तक के
उन्नीस नक्षत्रों के, तारा-प्रमारण से, अठानवे तारे प्रज्ञप्त हैं।
मनाग-नं
ममवाय-१८