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५६. सन्वेवि णं जमगपन्वया दस-
दस जोयणसयाई उड्ढे उच्चतेणं, दस-दस गायउसयाई उन्हेणं, मूले दस-दस जोयणसयाई प्रायामविखंभेणं पण्णत्ता।
५६. सभी यमक पर्वत ऊँचाई की दृष्टि
से दस-दस सौ/हजार-हजार योजन ऊँचे, हजार-हजार गाउ उद्वेधवाले/ गहरे और मूल में हजार-हजार योजन आयाम-विष्कम्भक/लम्बेचौड़े प्रज्ञप्त हैं।
५७. एवं चित्त-विचित्तकूडा वि
भणियव्या ।
५७. इसी प्रकार चित्र और विचित्रकूट
भी कथित हैं।
५८. सब्वेवि णं वट्टवेयड्ढपव्वया दस
दस जोयणसयाई उठं उच्चतेण, दस-दस गाउयसयाई उत्वेहेणं, सव्वत्य समा पल्लगसंठाणसंठिया, मूले दस-दस जोयणसयाई दिक्खंभेणं पण्णत्ता।
५८. सभी वृत्तवैताठ्य-पर्वत हजार-हजार
योजन ऊँचे, हजार-हजार गाउ उद्वेषवाले/गहरे, सर्वत्र सम, पल्यसंस्थान से संस्थित और मूल में हजार-हजार योजन आयामविष्कम्भक/लम्बे-चौड़े प्रज्ञप्त हैं।
५६. सव्वेवि णं हरिहरिस्सहकूडा
वक्खारकूडवज्जा दस-दस जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं, मूले दस जोयणसयाई दिक्खंभणं मण्णता।
५६. वक्षस्कारकूट को छोड़कर सर्व
हरिकूट और हरिस्सहकूट ऊँचाई की दृष्टि से हजार-हजार योजन ऊँचे और मूल में हजार-हजार योजन विष्कम्भक/चौड़े प्राप्त हैं ।
६०. एवं वलकूडावि नंदणकूड
यस्ता ।
६०. इसी प्रकार नन्दनकूट को छोड़कर
वलकूट भी [प्राप्त है।
६१. अरहा वि अरिहनेमी दस
वाससयाई सवाऽयं पालइता सिडे बु? मुत्ते अंतगडे परिणियडे सध्यदुराप्प होणे।
६१. अहत् अरिष्टनेमि हजार वर्षों की
सर्वायु पालकर सिद्ध, वृद्ध, मुक्त, अन्तकृत, परिनिर्वृत तथा सर्व दुग्य-मुक्त हुए।
६२. पासमय परहो दस मयाई
जिणार होत्या.
६२. अहंत पाश्वं के हजार जिन/
फेवली ।
समवाय-शतोत्तर