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१०. अर्हत् अरिष्टनेमि ने तीन सौ वर्षों
तक कुमारवास मध्य रहकर, मुड होकर अगार से अनगार
प्रव्रज्या ली। ११. वैमानिक देवों के विमानों के
प्राकार ऊँचाई की दृष्टि से तीनतीन सौ योजन ऊंचे प्रज्ञप्त हैं ।
१०. अरिट्ठनेमी णं अरहा तिण्णि
वाससयाई कुमारवास मज्झावसित्ता मुंडे भवित्ता अगाराम्रो
अणगारिश्र पव्वइए। ११. वेमाणियारणं देवाणं विमाण
पागारा तिष्णि तिणि जोयणसयाई उड्ढे उच्चत्तेगं
पण्णत्ता। १२. समणस्स रणं भगवनो महावीर-
स्स तिणि सयाणि चोदस
पुवीणं होत्था। १३. पंचधणुसइयस्स णं अंतिम
सारीरियस्स सिद्धिगयस्स सातिरेगाणि तिणि धणुसयाणि जीवप्पदेसोगाहणा
१२. श्रमण भगवान् महावीर के तीन
सौ चौदहपूर्वी थे ।
१३. पांच सौ धनुप के अन्तिम शरीरी,
सिद्धिगत जीवों के जीवप्रदेशों की अवगाहना तीन सौ धनुप से कुछ अधिक प्रज्ञप्त है।
पण्णत्ता।
१४. पुरुपादानीय अर्हत पार्श्व के साढे
तीन सौ चौदहपूर्वी साधुनों की
सम्पदा थी। १५. अर्हत् अभिनन्दन ऊँचाई की दृष्टि
से साढ़े तीन सौ धनुप ऊँचे थे ।
१४. पासस्स णं अरहो पुरिसा
दाणीयस्स अट्ठसयाई चोदस
पुटवीणं संपया होत्या । १५. अभिनंदणे णं अरहा अट्ठाई
धणुसयाई उड्ढे उच्चत्तेणं
होत्या। १६. संभवे रणं अरहा चत्तारि धणु
सयाई उद्धं उच्चत्तेणं
होत्था। १७. सव्येवि रणं णिसट-नीलवंता
वासहरपव्यया चत्तारि-चत्तारि जोयणसयाई उद उच्चत्तणं, चत्तारि-चत्तारि गाउयसयाई उध्येहेणं पण्णता।
१६. अहंद संभव ऊँचाई की दृष्टि से
चार सौ धनुप ऊंचे थे।
१७. सभी निपघ और नीलवान् वर्ष
घर पर्वत ऊँचाई की दृष्टि से चार मी योजन ऊंचे और चार-चार सौ गार उद्वे धवाले/ गहरे प्रजप्त हैं। .
.. मनगय मुन
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समवाय-शनोत्तर