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परणपण्णइमो समवायो
पचपनवां समवाय
१. मल्ली गं अरहा पणपण्णं वास
सहस्साइं परमाउं पालइत्ता सिद्ध बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिन्वुडे
सव्वदुक्खप्पहीणे । २. मंदरस्स णं पव्वयस्स पच्चस्थिमिल्लानो चरिमंतानो विजयदारस्स पच्चथिमिल्ले चरिमंते, एस णं पणपणं जोयणसहस्साई प्रवाहाए अंतरे पण्पते ।
१. अर्हत् मल्ली पचपन हजार वर्ष की
परम-आयु पालकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, अन्तकृत, परिनिर्वृत्त और सर्व दुःखमुक्त हुए। २. मन्दर पर्वत के पश्चिमी चरमान्त से विजयद्वार के पश्चिमी चरमान्त का अबाधत: अन्तर पचपन हजार योजन प्रज्ञप्त है।
३. एवं चउहिसिपि विजय-वेजयंत-
जयंत-अपराजियंति।
३. इसी प्रकार चारों दिशाओं में विजय,
वैजयन्त, जयन्त और अपराजित [द्वारों का अन्तर ज्ञातव्य है।]
४. समणे भगवं महावीरे अंतिमराइ
यंसि पणपण्णं अज्झयणाई कल्लाणफलविवागाई, पणपण्णं अज्झयणारिण पावफलविवागाणि वागरिता सिद्ध बुद्ध मुत्ते अंतगडे परिणिन्वुड़े सव्वदुक्खप्पहोणे।
४. श्रमण भगवान् महावीर अंतिम रात्रि में कल्याणफलविपाक के पचपन अध्ययन और पापफलविपाक के पचपन अध्ययनों की देशना देकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, अन्तकृत, परिनिवृत और सर्व दुःख-मुक्त हुए।
५. पढमविइयासु-दोसु पुढवीसु पणपण्णं निरयावाससयसहस्सा
५. पहली और दूसरी-इन दो पृथ्वियों
में पचपन शत-सहस्र/लाख नरकावास प्रज्ञप्त हैं।
पण्णत्ता।
६. दसरणावरणिज्जनामाउयारणं तिण्हं कम्मपगडीणं परएपण्णं उत्तरपगडीनो पण्णत्तानो।
६. दर्शनावरणीय, नाम तथा आयुष्यइन तीन कर्म-प्रकृतियों की पचपन उत्तर-प्रकृतियां प्रज्ञप्त हैं।
ममवाय-५५
समवाय-सुत्तं