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बावट्ठमो समवाश्रो
१. पंचसवच्छरिए णं जुगे बावट्ठ पुणिमात्र वाट्ठि श्रमावसान पण्णत्ताओ ।
२. वासुपुज्जस्स णं रहो बावट्ट गणा बार्वा गहरा होत्था ।
३. सुक्कपक्खस्स णं चंदे बावट्ठ भागे दिवसे दिवसे परिवडइ, ते चेव बहुलपक्खे दिवसे दिवसे परिहायइ |
४. सोहम्मीसाणेसु
कप्पेसु पढमे पत्थडे पढमावलियाए एगमेगाए दिसाए बावट्ठ-बावट्ठ विमाणा
पण्णत्ता ।
५. सव्वे
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विमाणपत्est
पण्णता ।
समवाय-सुत्तं
वैमाणियाणं बावट्ठ पत्थडग्गेणं
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बासठवां समवाय
१. पच सांवत्सरिक युग में वासठ पूर्णिमाएँ और वासठ श्रमावस्थाएँ प्रज्ञप्त हैं ।
२. प्रत वासुपूज्य के वासठ गरण और बासठ गणधर प्रज्ञप्त थे ।
३. शुक्लपक्ष का चन्द्र दिन-प्रतिदिन वासठ भाग बढ़ता है और बहुलपक्ष / कृष्णपक्ष में चन्द्र दिन-प्रतिदिन वासठ भाग घटता है ।
४. सौधर्म - ईशान कल्प के प्रथम प्रस्तर की प्रथम आवलिका की एक-एक दिशा में वासठ - वासठ विमान प्रज्ञप्त है
५. सर्व वैमानिकों के प्रस्तर की दृष्टि से विमान प्रस्तर बासठ प्रज्ञप्त हैं ।
समवाय- ६२
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