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चउसठिमो समवायो
चौसठवां समवाय
१. अटुट्टमिया णं मिक्खुपडिमा
चउसट्ठीए राइदिएहिं दोहि य अट्ठासीएहि भिक्खासएहिं अहासुत्तं महाकप्पं अहामगं अहातच्चं सम्मं काएरण फासिया पालिया सोहिया तीरिया किट्टिया आणाए पाराहिया यावि भवइ ।
१. अष्टअष्टमिका भिक्षु-प्रतिमा चौसठ
रात-दिन में दो सौ अठासी भिक्षा [-दत्तियों] से सूत्र के अनुरूप, कल्प के अनुरूप, मार्ग के अनुरूप और तथ्य के अनुरूप काया से सम्यक् स्पृष्ट, पालित, शोधित, पारित, कीर्तित और आज्ञा से आराधित होती है।
२. असुरकुमारावास चौसठ शत-सहस्र/
लाख प्रज्ञप्त हैं।
२. चउट्टि असुरकुमारावाससय
सहस्सा पण्णत्ता। ३. चमरस्स रणं रणो चउछि सामाणियसाहस्सीमोपण्णत्तायो।
३. राजा चमर के चौसठ हजार सामानिक प्रज्ञप्त हैं।
४. सव्वेवि णं दधिमुहा पन्वया पल्ला-संठाण-संठिया सन्वत्थ समा दस जोयणसहस्साई विक्खंभेणं, उस्सेहेणं, चउछिचउछि जोयरणसहस्साई पण्णत्ता।
४. समस्त दधिमुख पर्वत पल्य-संस्थान
से संस्थित हैं, सर्वत्र सम हैं, दस हजार योजन विष्कम्भक/चौड़े हैं, उनका उत्सेध (ऊँचाई) चौसठचौसठ हजार योजन प्रज्ञप्त है ।
५. सोहम्मीसाणेसु बंभलोए यतिसु कप्पेसु चउछि विमाणावाससयसहस्सा पण्णत्ता।
५. सौधर्म, ईशान और ब्रह्मलोक-इन
तीनों कल्पों में चौसठ शत-सहस्र/ एक लाख विमानावास प्रज्ञप्त हैं।
६. सव्वस्सवि य णं रणो चाउरंतचक्कवट्टिस्स चउसलिट्ठोए महग्धे मुत्तामणिमए हारे पण्णत्ते।
६. समस्त चातुरन्त चक्रवर्ती राजाओं
के चौसठ लड़ियों वाला महार्थ्य/ बहुमूल्य मुक्तामरिणयों का हार प्रज्ञप्त है।
समवाय-सुत्तं
समवाय-६४ ।