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एसट्ठिम समवा
१. चंदस्स णं संवच्छरस्स एगमेगे उ एगूणस राइंदियाणि राईदिग्गेणं पण्णत्ते |
२. संभवे णं अरहा एगूणसट्ठि पुत्वसय सहस्साई श्रगारमज्झावसित्ता णं श्रगारानो अपगारिश्र पव्वइए ।
३. मल्लिस णं श्ररहश्रो एगूणसट्ठ मोहिनाणिसया होत्या ।
समवाय-सुत्तं
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उनसठवां समवाय
१. चन्द्र-संवत्सर की प्रत्येक ऋतु रातदिन की दृष्टि से उनसठ रात-दिन की प्रज्ञप्त है ।
२. श्रर्हत् संभव ने उनसठ शत - सहस्र / लाख पूर्व तक अगार-मध्य रहकर प्रगार से अनगार प्रव्रज्या ली ।
३. अत् मल्ली के उनसठ सौ अवधिज्ञानी थे ।
समवाय- ५६