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एगूरणपण्णासइमो
समवायो
उनचासवां
समवाय
१. सत्तसत्तमिया गं भिक्खुपडिमा एगणपण्णाए राईदिएहिं छन्नउएरणं भिक्खासएणं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्म कारण फासिया पालिया सोहिया तीरिया किट्टिया प्राणाए प्राराहिया याचि भवइ।
१. सप्तसप्तमिका भिक्षुप्रतिमा उनचास
रात-दिन में एक सौ छियानवे भिक्षा[-दत्तियों से सूत्र के अनुरूप, कल्प के अनुरूप, मार्ग के अनुरूप तथा तथ्य के अनुरूप काया से सम्यक् स्पृष्ट, पालित, शोधित, पारित, कीर्तित और आज्ञा से आराधित होती है।
२. देवकुरु-उत्तरकरासु णं मणुया
एगणपण्णाए राइदिएहि संपत्तजोवरणा भवंति ।
२. देवकुरु और उत्तरकुरु के मनुज
उनचास रात-दिन में यौवन-सम्पन्न हो जाते हैं।
३. तेइंदियाणं उक्कोसेणं एगणपण्णं ।
राइंदिया ठिई पण्णत्ता।
३. त्रीन्द्रिय जीवों की उत्कृष्ट स्थिति
उनचास रात-दिन की प्रज्ञप्त है।
समवाय-सुत्तं
समवाय-४६