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सत्तचालीसइमो
समवायो
सैंतालीसवां
समवाय
१. जया णं सुरिए सवन्तरमंडलं उवसंकमित्ता णं चार चरइ तया णं इहगयस्स मणूसस्स सत्तचत्तालोसं जोयणसहस्सेहि दोहि य तेवहिं जोयणसएहि एक्कघीसाए य सद्विभागेहि जोयणस्स सूरिए चक्खुफासं हवमागच्छइ ।
१. जव सूर्य सर्व-ग्राभ्यन्तर मण्डल का
उपसंक्रमण कर सचरण करता है तव भरतक्षेत्रगत मनुष्य को वह सैतालीस हजार दो सौ तिरेसठ योजन और एक योजन के साठ भागों में से इक्कीस भाग (४७२६३ ३१ योजन) की दूरी से दिखाई देता है।
२. थेरे णं अग्गिभूई सत्तालीसं
वासाई अगारमझा वसित्ता मुंडे भवित्ता अगाराम्रो अणगारियं पव्वइए।
२. स्थविर अग्निभूति सैतालीस वर्ष तक अगार-मध्य रहकर मुंड हुए और अगार से अनगार प्रव्रज्या ली।
____ संमचाय-पुतं
सेमवाय-सुत्तं
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समवाय-४०
समवाय-४७