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७. गूढग्यारी निमूहेज्जा, ___ मायं मायाए छायए। असच्चवाई णिहाई,
महामोहं पकुव्वइ ॥ ८. धंसेइ जो अभूएणं,
अकम्मं अत्तकम्मुणा। अदुवा तुम कासित्ति,
महामोहं पकुन्वइ ।
९. जाणमारणो परिसमो,
सच्चामोसारिण मासइ। अज्झीणझंझे पुरिसे,
महामोहं पकुव्वइ । १०. अणायगस्स नयवं,
दारे तस्सेव धंसिया । विउलं विक्खोभइत्ताणं,
किच्चा णं पडिबाहिरं ॥ उवगसंतंपि पित्ता,
पडिलोमाहि वग्गुहिं । भोगभोगे वियारेई,
महामोहं पकुव्वइ ।
७. जो गूढाचारी माया से माया
को छिपाकर असत्यवादी प्रलाप करता है, वह महामोह का
प्रवर्तन करता है। ८. 'तुम कौन हो' यह कहकर जो
अपने अकर्म/दुष्कर्म के कर्म का धौंस/कलंक दूसरों पर जमाता है, वह महामोह का प्रवर्तन
करता है। ६. जो कलहकारी-पुरुप परिषद को
जानता हुआ सत्यमृषा/सफेद झूठ बोलता है, वह महामोह
का प्रवर्तन करता है। १०. जो मन्त्री नायक/नरेश की
अनुपस्थिति में धौंस जमाता है, विपुल विक्षोभ / आतंक और अधिकार जमाता है, विलोम वचनों से निकटवर्तियों का भी तिरस्कार कर उनके भोगउपभोग का विदारण कर देता है, वह महामोह का प्रवर्तत
करता है। ११. जो कुवारा न होते हुए भी
स्वयं को कुंवारा कहता है, पर स्त्रियों में गृद्ध रहता है, वह
महामोह का प्रवर्तन करता है । १२. जो कोई ब्रह्मचारी न होते हुए
भी स्वयं को ब्रह्मचारी कहता है, उसका कहना सांडों के बीच गधे की तरह रेंकना है; अत्यधिक मायामृषा बोलने वाला अज्ञानी अपना अहित
११. अकुमारभूए जे केई,
कुमारभूएत्तहं वए। इत्याहिं गिद्धे वसए,
महामोहं पकुवइ ॥ १२. अभयारी जे केई,
बंभयारोत्तहं वए। गद्दभेव्व गवां मझे,
विस्सरं नयई नंद ॥ अप्पणो अहिए बाले,
मायामोसं बहुं भसे ।
समवाय-३०
समवाय-सुतं