________________
वोकम्म धम्मामो भंसे,
महामोहं पकुवइ ॥ १६. तहेवाणतणाणीणं,
जिणाणं वरदंसिरणं। तेसि अवण्णवं बाले,
महामोहं पकुव्वइ । २०. नेयाउअस्स मग्गस्स,
दुळे अवयरई बहुं । तं तिप्पयंतो भावे,
महामोहं पकुवइ ।। २१. पायरियउवज्झाएहि.
सुयं विणयंच गाहिए। ते चेव खिसई बाले,
महामोहं पकुवइ ॥ २२. पायरियउवझायाणं,
सम्मं नो पडितप्पइ। अप्पडिपूयए थद्धे,
महामोहं पकुवइ ।
भ्रंश करता है, वह महामोह
का प्रवर्तन करता है। १६. अनन्त ज्ञानी, वरदर्शी/पारदर्शी
जिनेश्वरों का अवर्णक/निन्दक वाल-पुरुष महामोह का प्रवर्तन
करता है। २०. जो दुष्ट न्याय-मार्ग का अपकार/
उल्लंघन करता है, उसी में तृप्ति का भाव करता है, वह
महामोह का प्रवर्तन करता है। २१. जो श्रुत और विनय-ग्राहित/
शिक्षित बाल-पुरुष आचार्य और उपाध्याय पर खीजता है, वह
महामोह का प्रवर्तन करता है । २२. जो अप्रतिपूजक और स्तब्ध |
अभिमानी व्यक्ति आचार्य उपाध्याय को सम्यक् प्रकार से परितृप्त नहीं करता है, वह
महामोह का प्रवर्तन करता है। २३. जो कोई अल्पज्ञ श्रुत से आत्म
प्रशंसा करता हैं, स्वयं को स्वाध्यायवादी कहता है, वह
महामोह का प्रवर्तन करता है। २४. जो कोई अतपस्वी होते हुए भी
सम्पूर्ण लोक में उत्कृष्ट तप से आत्म-प्रशंसा करता है, वह
महामोह का प्रवर्तन करता है । २५. जो कोई ग्लान/रुग्ण के उप
स्थित होने पर साधारणतः बहुत या थोड़ी-कुछ भी सेवा नहीं करता, आत्म-प्रबोधिक
२३. अबहुस्सुए य जे केई,
सुएण पविकत्थइ। सज्झायवायं वयइ,
महामोहं पकुव्वइ ।। २४. अतवस्सीए य जे केई,
तवेण पविकत्यइ । सवलोयपरे तेणे,
महामोहं पकुवइ । २५. साहारणट्ठा जे केई,
गिलाणम्मि उवहिए। पहू ण कुणई किच्चं, ___ मझपि से न कुवइ ॥
समवाय-३०
१०७
समवाय-सुत्त