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चारं चरइ, तया गं इहगयस्त पुरिसस्स तेत्तीसाए जोयणसहस्सेहि किचिविसेसूर्णेहिं चक्खुप्फासं हवमागच्छइ।
विचरण करता है, तब भरतक्षेत्रगत मनुष्य को 'वह कुछ विशेष न्यून तेतीस हजार योजन की दुरी से चक्षु-स्पर्श होता है। ....
५. इमीसे णं रयणप्पहाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं तेत्तीसं पलिनोवमाइं ठिई पण्णत्ता।
. ५. इस रत्नप्रभा पृथिवी के कुछेक नैर
यिकों की तेतीस पल्योपम स्थिति प्रजप्त है। .
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६. अहेसत्तमाए पुढवीए काल-महा-
काल - रोख्य - महारोरएसु नेर- याणं तेत्तीसं सागरोवमाई लिई पण्णत्ता।
६.अबोवर्ती सातवीं पृथिवी के काल,' . महाकाल, रोल्क और महारोरुक- . नरकावासों के नैरयिकों की उत्कृष्टतः तेतीस सागरोपम स्थिति प्रज्ञप्त है। :
७. अप्पइट्ठाणनरए नेरइयाणं अजह- . ७. अप्रतिष्ठान-नरक के नरयिकों की पणमणुक्कोसणं तेत्तीसं सागरो- अजधन्यतः-अनुत्कृष्टतः/सामान्यतः । वमाई ठिई पण्णत्ता। ... तेतीस सागरोपम स्थिति प्रशंप्त है।''
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८. असुरकुमाराणं देवाणं अत्येगइ- ८. कुछेक असुरकुमार देवों की तेतीस याणं तेत्तीसं पलिग्रोवमाइं पल्योपम स्थिति प्रज्ञप्त है।
ठिई पण्णत्ता। ६. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु देवाणं . ६. सौधर्म-ईशान कल्प में कुछेक देवों
अत्थेगइयाणं तेत्तीसं पलियो- की तेतीस पल्योपम स्थिति प्रज्ञप्त है।
माई ठिई पण्णत्ता। १०. विजय-वेजयंत जयंत-अपराजि- १०. विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपरा
एसु विमाणेसु उक्कोसणं तेत्तीसं . जित विमानों में उत्कृष्टत: तेतीस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। , सागरोपम स्थिति प्रज्ञप्त है।'
११. जे देवा सव्वदृसिद्ध महाविमाणं
देवत्ताए उववण्णा, तेसि एं देवाणं अजहण्णमणुक्कोसणं तेत्तीसं सागरोवमाई ठिई पप्णत्ता।
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११. जो देव सवार्थसिद्ध महाविमान में . देवत्व से उपपन्न हैं, उन देवों की
अजघन्यतः अनुत्कृष्टतः अर्थात
सामान्यतः तेतीस सागरोपम स्थिति . . प्रज्ञप्त है। ..
समवाय-सुत्तं
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समवाय-३३