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१२. ते णं देवा तेत्तीसाए श्रद्धमासेहि प्राणमंति वा पाणमंति वा ऊमसंति वा नोससंति वा ।
१३. तेसि णं देवारणं
वाससहस्से हि
समुप्पज्जइ ।
तेत्तीसाए श्राहारट्ठे
१४. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे तेत्तीसre भवग्गहहिं सिज्भिस्सति वुज्झिस्संति मुच्चिस्सति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खारणमंतं करिस्सति ।
समवाय नुस
१२. वे देव तेतीस
१:३
मास / पक्ष मे ग्रान / ग्राहार लेते है, पान करते है, उच्छवास लेते है, निःश्याम छोड़ते है ।
१३. उन देवों के तेतीस हजार क्यों न ग्राहार की इच्छा समुत्पन्न होती है ।
१४. कुछेक भव-सिद्धिक जीव है, जो तेतीस भव ग्रहण कर सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, मुक्त होंगे, परिनिर्वृत होंगे, सर्वदुःशान्त करेंगे |
समवाय-३३