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इत्थीविसयगेहीए,
महामोहं पकुवइ ।
सिर
१३. जं निस्सिए उव्वहइ,
जससामहिमेण वा। तस्स लुब्मइ वित्तम्मि,
महामोहं पकुवइ ॥ . १४. ईसरेण अदुवा गामेणं,
अणिस्सरे ईसरीकए। तस्स सपग्गहीयस्स,
गया। ईसादोसेण आइछे,
कलुसाविलचेयसे । ने अंतरायं चेएइ,
महामोहं पकुब्वइ । १५. सप्पी जहा अंडउडं, __ भत्तारं जो विहिसइ । सेरणावई पसत्यारं,
महामोहं पकुव्वइ ॥
करता है और स्त्री-विपय के प्रति गृद्ध होता है, वह महामोह
का प्रवर्तन करता है। १३. जो यश का लाभ होने से
आश्रित जीवन व्यतीत करता है, वह धन-लुब्ध महामोह का
प्रवर्तन करता है। १४ उस सम्पदाहीन के पाम अतुल
श्री/धन-सम्पत्ति आती है, जो ऐश्वर्य से कम या अनैश्वर्य से ऐश्वर्य प्राप्त करता है। किन्तु जो ईर्ष्या-द्वेष से पाविष्ट/ आक्रान्त पुरुप कलुष-चित्त से अन्तराय उत्पन्न करता है, वह
महामोह का प्रवर्तन करता है। १५. जिस प्रकार सर्पिणी अण्डपुट/
अण्डराशि का हनन करती है. उसी प्रकार जो भर्तार, सेनापति और प्रशास्ता/प्रशासक का हनन करता है, वह महामोह
का प्रवर्तन करता है। १६. जो राष्ट्र-नायक, निगम-नेता
और प्रमुख/नगरसेठ का हनन करता है, वह महामोह का
प्रवर्तन करता है। १७ जो पुरुप प्राणी-वहुल के लिए
द्वीप/दीप, बाण और नेता है, उमका हनन महामोह का प्रव
र्तन करता है । १८. जो धर्म-उपक्रम में उपस्थित,
प्रतिविरत, संयत, सुतपस्वी का
१६. जे नायगं व रटुस्स,
नेयारं निगमस्स वा। सेट्टि बहुरवं हंता,
महामोहं पकुवइ ॥ १७. बहुजणस्त ऐयारं,
दीवं ताणं च पाणिणं। एयारिसं नरं हता,
महामोहं पकुव्वइ ॥ १६. उवट्ठियं पडिविरयं,
संजयं सुतवस्सियं । समवाय-सुतं
समवाय-३०