________________
तीसइमो समवा
१. तीसं मोहणीयठाणा पण्णत्ता,
तं जहा -
१. जे यावि तसे पाणे,
वारिमज्भे विगाहिया । उदक्कम्म मारेइ, महामोहं
पकुब्वइ ॥
२. सीसावेढेण जे केई,
आवेढे श्रभिक्खणं । तिब्वासुभसमायारे, महामोहं पकुव्वइ ॥
३. पाणिणा संपिहित्ताणं,
सोयमावरिय पाणिणं ।
अंतोनदंतं मारेई, महामोहं पकुवइ ॥
४. जायतेयं समारम्भ,
बहुं श्ररु भिया जरणं । तोधूमेण मारेई, महामोहं
पकुब्वइ ॥
५. सिस्सम्मि जे पहणइ, उत्तमंगम्मि चेयसा ।
विभज्ज मत्ययं फाले, महामोहं
पकुव्वइ ॥
६. पुणो पुणो पणिहिए,
हणित्ता उवहसे जणं । फले अव दडेणं, महामोहं पकुवइ ॥
समवाय-सुत्तं
१०४
तीसवां समवाय
१. मोहनीय स्थान तीस प्रज्ञप्त हैं । जैसे कि -
१. जो किसी त्रस प्राणी को पानी के बीच ले जाकर पानी से आक्रमण कर मारता है, वह महामोह का प्रवर्तन करता है । २. जो तीव्र अशुभ समाचरणपूर्वक किसी के मस्तक को बन्धनों से निरन्तर बांधता है, वह महामोह का प्रवर्तन करता है । ३. जो प्राणी को हाथ से बांधकर, बंदकर अन्तविलाप करते हुए को मारता है, वह महामोह का प्रवर्तन करता है ।
४. जो अनेक जीवों को अवरुद्ध कर, अग्नि जलाकर उसके धुंए से मारता है, वह महामोह का प्रवर्तन करता है ।
५. जो किसी प्रारिण के शीर्ष उत्तम
अंग पर प्रहार करता है, मस्तक का विभाजन कर फोड़ देता है, वह महामोह का प्रवर्तन करता है ।
६. जो पुनः पुनः मनुष्य का घात करता है, दण्ड या फरशे से हनन कर उपहास करता है. वह महामोह का प्रवर्तन करता है ।
समवाय-३०