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१२. जं देवा मज्झिम मज्झिम गेवे
ज्जयविमाणेसु देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवारणं उनकोसेरणं सत्तावीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता ।
१३. ते गं देवा सत्तावीसाए श्रद्धमासारणं प्राणमति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा ।
१४. तेसि रणं देवारणं सत्तावीसाए वाससहि श्राहारट्ठ
समुप्पज्जइ
१५. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे सत्तावीसाए भवग्गहह सिन्झिस्संति बुज्झित्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्सति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्सति ।
समवाय-सुतं
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१२. जो देव मध्यम ग्रैवेयक विमान में देवत्व से उपपन्न है, उन देवो की उत्कृष्टतः सत्ताईम सागरोपम स्थिति प्रज्ञप्त है ।
१३. वे देव सत्ताईस अर्धमासों / पक्षो में श्रान / आहार लेते हैं, पान करते हैं, उच्छ् वास लेते हैं, नि. श्वास छोड़ते
है ।
१४. उन देवों के सत्ताईस हजार वर्ष में आहार की इच्छा ममुत्पन्न होती है |
१५. कुछेक भव-सिद्धिक जीव है, जो सत्ताईम भव ग्रहणकर सिद्ध होगे, बुद्ध होंगे, मुक्त होंगे, परिनिर्वृत होगे, मर्वदुःखान्त करेगे ।
समवाय- २७