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१७. तेसि णं देवाणं पण्णरसहि वास-
सहस्सेहिं प्राहारट्टे समुप्पज्जइ।
१७. उन देवों के पन्द्रह हजार वर्ष में
आहार की इच्छा समुत्पन्न होती है ।
१८. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे
पण्णरसहिं भवग्गहणेहि सिम्झिस्संति बुझिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुयखाणमंतं करिस्संति ।
१८. कुछेक भवसिद्धिक जीव हैं, जो पन्द्रह
भव ग्रहणकर मिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, परिनिर्वृत होंगे, सर्वदुःखान्त करेंगे ।
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समवाय-सुत्तं
मरवाय-१६