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३. माणुसुत्तरे णं पव्वए सत्तरसएक्कवीसे जोयणसए उड़ढ उच्चत्तणं पण्णत्ते |
४. सन्वेसिपि णं वेलंधर-प्रणुवेलंधरगराईणं श्रावासपव्वया सत्तरसएक्कवीसाई जोयणसयाई उड़ढं उच्चतेणं पण्णत्ता ।
५. लवणे णं समुद्दे सत्तरस जोयणसहस्साइं सव्वगेणं पण्णत्ते ।
६. इमीसे णं रयणप्पहाए पुढवीए बहुसमरम णिज्जाश्रो भूमिभागाश्र सारिरेगाई सत्तरस जोयणसह"स्साई उड्ढ उप्पतित्ता ततो पच्छा चारणाणं तिरियं गती पवत्तति ।
७. चमरस्त णं असुरिदस्स असुर रण्णो तिगिद्दिकूडे उप्पायपत्वए सत्तरस एक्कवीसाइं जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ते ।
८. वलिस्स णं वतिरोर्याणदस्स वतिरोयणरणो हर्यागंदे उप्पायपव्वए सत्तर एक्कवीसाइं जोयणसयाई उड़ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ते ।
६. सत्तरसविहे मरणे पण्णत्ते, तं जहा -
श्रावीईमरणे श्रोहिमरणे श्रायंतियमरणे वलायमरणे वसट्टमरणे अंतोसल्लमरणे तब्भवमरणे बालमरणे पंडितमरणे बालपंडितमरणे
समवाय-सुत्तं
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३. मानुपोत्तर पर्वत ऊँचाई की दृष्टि से सतरह सौ इक्कीस योजन ऊँचा प्रज्ञप्त है ।
४. सर्व वेलन्धर और अनुवेलन्धर नागराजाओं के आवास पर्वत ऊँचाई की दृष्टि से सतरह सौ इक्कीस योजन ऊँचे प्रज्ञप्त हैं ।
५. लवण समुद्र का सर्वाग्र / शिखर सतरह हजार योजन प्रज्ञप्त है ।
६. इस रत्नप्रभा पृथिवी में बहुसम / प्राय: रमरणीय भूमि भाग से सतरह हजार योजन से अधिक ऊपर उठकर तत्पश्चात् चारण की तिर्यक् गति प्रवर्तित होती है ।
७. असुरराज असुरेन्द्र चमर का तिगिछिकूट - उत्पात - पर्वत ऊँचाई की दृष्टि से सतरह सौ इक्कीस योजन ऊंचा प्रज्ञप्त है ।
८. सुरेन्द्र वलि का रुचकेन्द्र - उत्पात - पर्वत ऊंचाई की दृष्टि से सतरह सौ इक्कीस योजन ऊंचा प्रज्ञप्त है ।
६. मरण सतरह प्रकार का प्रज्ञप्त है जैसे कि -
अवीचि मरण / अविच्छेद - मरण, अवधि मरण / मर्यादा-मरण, प्रात्यन्तिक-मरण / अद्यतन-मरण, वलन्मरण / अव्रत-मरण,
अन्तःशल्य
समवाय- १७