________________
अट्ठारसमो समवाश्र
१. अट्ठारसविहे बंभे पण्णत्ते,
तं जहाप्रोरालिए कामभोगे णेव सयं मणेणं सेवइ, नोवि अण्णं मणेणं सेवावेइ, मणेणं सेवंतं पि श्रणं न समणुजारगाई |
श्रोरालिए कामभोगे णेव सयं वायाए सेवइ, नोवि अण्णं वायाए सेवावेs, वायाए सेवंतं पि श्रण्णं न समणुजागाइ 1
ओरालिए कामभोगे णेव सयं काणं सेवइ, नोवि श्रवणं कारणं सेवावे, कारणं सेवंतं पि श्र न समणुजारणाइ ।
दिव्वे कामभोगे व सयं मरणं सेवइ, नोवि प्रणं मरणं सेवावेइ, मरणं सेवंतं पि श्रणं न समणुजारणाइ ।
दिव्वे कामभोगे व सयं वायाए सेवइ, नोवि अण्णं वायाए सेवावेद, वायाए सेवतं पि श्रणं न समजाणाइ |
समवाय-सुत्तं
६४
अठारहवां समवाय
१. ब्रह्मचर्यं अठारह प्रकार का प्रज्ञप्त है । जैसे कि - श्रदारिक/ शारीरिक काम भोगों का न तो स्वयं मन से सेवन करता है, न ही अन्य को मन से सेवन कराता
1
और न मन से सेवन करते हुए अन्य का समर्थन करता है । श्रदारिक / शारीरिक काम-भोगों का न तो स्वयं वचन से सेवन करता है, न ही अन्य को वचन से सेवन कराता है और न वचन से सेवन करते हुए अन्य का समर्थन करता है ।
दारिक/ शारीरिक काम-भोगों का न तो स्वयं काया से सेवन करता है, ही अन्य को काया से सेवन कराता है और न काया से सेवन करते हुए अन्य का समर्थन करता है ।
दिव्य / दैविक काम - भोगों का न तो स्वयं मन से सेवन करता है, न ही अन्य को मन से सेवन कराता है। और न मन से सेवन करते हुए अन्य का समर्थन करता है ।
दिव्य / दैविक काम भोगों का न तो स्वयं वचन से सेवन करता है, न ही अन्य को वचन से सेवन कराता है और न वचन से सेवन करते हुए अन्य का समर्थन करता है ।
समवाय - १८