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१४. तेसि गं देवारणं एगणवीसाए
याससहम्सेहि पाहारछे समुष्पाजद ।
१४. उन देवों के उन्नीस हजार वर्षों में
आहार की इच्छा समुत्पन्न होती
१५. सतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे
एगूणवीसाए भवग्गहणेहिं सिझिस्सति बुझिस्सति मुच्चिस्सति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्सति ।
१५. कुछेक भव-सिद्धिक जीव हैं, जो
उन्नीस भव ग्रहणकर सिद्ध होंगे, वुद्ध होंगे, मुक्त होंगे, परिनिर्वत होंगे, सर्वदुःखान्त करेंगे।
ममत्राय-१६