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एगूणवीसमो समवानो
उन्नीसवां समवाय
१. एगरणवीसं पायजमयरणा पणत्ता, त जहाउरिखतणाए संघाडे,
अडे कुम्भे ये सेलए। तु विय रोहिणी मल्ली,
मागंदी चदिमातिय॥ दावद्दये उदगपाए, .
मडक्के तेतलीइ य। नदीफले अवरकका,
प्राइण्णे सु सुमाइ य॥ प्रवरे य पोंडरोए,
गाए एगरणवीसइमे।
१ ज्ञाता-सूत्र के उन्नीस अध्ययन प्रज्ञप्त हैं। जैसे कि१. उत्क्षिप्तज्ञात, २. संघाट, ३. अंड, ४. कूर्म, ५. शैलक, ६. तुम्ब, ७. । रोहिणी, ८. मल्ली, ६. माकंदी, १०. चन्द्रमा, ११. दावद्रव, १२. उदकनात, १३. मंडूक, १४. तेतली, १५. नन्दिफल, १६. अपरकंका, १७. पाकीणं, १८. सुसुमा और उन्नीसवां/१६. पुण्डरीकज्ञात ।..
२.जबुद्दीवे ण दीवे सुरिमा उवको.
सेएं एगणवीसं जोयणसयाई उद्यमहो तवंति।
२. जम्बुद्वीप द्वीप में सूर्य उत्कृष्टतः एक हजार नौ सौ योजन करी और अघो तपते हैं।
३. मुफ्केण महागहे प्रवरेणं उदिए समाणे एगरपवीसं पक्वत्ताई समं चार चरित्सा अमरेणं अत्यमणं उयागच्छद
३. शुक्र महाग्रह पश्चिम में उदित होकर
उन्नीम नक्षत्रों के साथ सहगमन करता हुमा पश्चिम में अस्त होता
४. अबुद्दोवस्त गं दीवस कलानो एगणवीस ऐमणाम्रो पण्णतामो।
४. जम्बुढीप द्वीप की कलाएँ उन्नीस'
देदक/विभाग प्रज्ञप्त हैं।'
• ५. एणीसं तित्पपरा अगार-
मम्भावसित्ता मुटे भविता सं अपारामोमपगारिमं पव्यापा।
५. उन्नीम तीर्थंकरों ने अगार-वास के. मध्य रहकर पश्चाद मुण्डित होकर अगार में प्रनगारित प्रव्रज्या ली।
समयाय-गृतं