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२०. तेसि णं देवाणं सत्तरसहि वास-
सहस्सेहिं प्राहारळे समुप्पज्जइ ।
२०. उन देवों के सतरह हजार वर्ष में
माहार की इच्छा समुत्पन्न होती है ।
२१. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, ने
सत्तरसहि भवग्गहणेहि सिम्झिसंति बुझिस्सति मुच्चिस्सति परिनिव्वाइस्सति सव्वदुक्खारणमंतं करिस्संति ।
२१. कुछेक भव-सिद्धिक जीव हैं, जो
सतरह भव ग्रहणकर मिद्ध होगे, बुद्ध होंगे, मुक्त होंगे, परिनिवृत होंगे, सर्वदुःखान्त करेंगे।
समवाय-१७
समवाय मुत