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४. तं चैव सुक्कपक्खस्स उवदंसेमाणे उवदंसेमाणे चिट्ठति, तं जहा - पढमाए पढमं भागं जाव पण्णरसेसु पण्णरसमं भागं ।
५. छ णक्खता पण्णरस मुहुत्तसंजुत्ता पण्णत्ता, तं जहा
सतभिसय भरणि श्रद्दा,
असलेसा साइ तह य जेट्ठा य ।
पण्णरसमुत्तसंजुत्ता ॥
६. चेत्तासोएस मासेसु पण्णरसमुहुत्तो दिवसो भवति ।
एते छष्णक्खत्ता,
७. एवं चेत्तासोएस मासेसु पण्णरसमुहुत्ता राई भवति ।
८. विज्जाश्रणुप्पवायस्स णं पुव्वस्स पण्णरस वत्थू पण्णत्ता ।
६. मणूसाणं
पण्णरसविहे पनोगे
पण्णत्ते, तं जहा
१. सच्चमणपोगे, २. मोसमणपोगे, ३. सच्चामोसमणपश्रोगे, ४. असच्चामोसमणझोगे, ५. सच्चवइपोगे, ६. मोसवइपोगे, ७. सच्चामोसवइपोगे, ८. प्रसच्चामोतवइ-पनोगे, ६. श्रोरालियसरीरकायपनोगे, १०. प्रोरानियमोससरीरकायपद्मोगे, ११. वेडव्वियसरीरकायपद्मोगे, १२. वेडव्वियमोससरीर
समवाय-लुतं
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शुक्ल पक्ष में
४. वही [ ध्रुव-राहु ] उपदर्शन / प्रकाशित कराता रहता है । जैसे कि -
प्रथमा को प्रथम भाग से लेकर पंनदर्श / पूर्णमामी को पन्द्रह भाग पर्यन्त उपदर्शन कराता रहता है ।
५. पन्द्रह मुहुर्त संयुक्त नक्षत्र छह अज्ञप्त हैं । जैसे कि
शतभिपक्, भरणी, आर्द्रा, आश्लेषा, स्वाति और ज्येष्ठा -- ये छह नक्षत्र पन्द्रह मुहूर्त संयुक्त रहते हैं ।
६. चैत्र और आश्विन माह में पन्द्रह मुहूर्त का दिवस होता है ।
७. इसी प्रकार चैत्र और आश्विन माह में पन्द्रह मुहूर्त की रात्रि होती है ।
5. विद्यानुवाद-पूर्व के वस्तु प्रधिकार पन्द्रह प्रजप्त हैं ।
६. मनुष्यों के प्रयोग / परिस्पन्दन पन्द्रह प्रकार के प्रज्ञप्त हैं । जैसे कि१. सत्यमनः प्रयोग, २. मृपामनः प्रयोग ३. सत्यमृपामनः प्रयोग, ४. ग्रमन्यमृपामनः प्रयोग ५. सत्यवचनप्रयोग, ६. मृपावचनप्रयोग, ७. नत्यमृपावचनप्रयोग, ८. श्रसत्यमृपावचनप्रयोग, 8. श्रदारिक शरीर-कायप्रयोग, १०. श्रीवारिक मिथ शरीरकायप्रयोग, ११. चैकिय रोग्यायप्रयोग, १२. वैयमिश्र शरीरकाय
समवान- १५