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१७. बायरवणप्फइकाइयारणं उक्को- - १७. बादर वनस्पतिकायिक की उत्कृष्टतः
सेणं दस वाससहस्साई ठिई दस हजार वर्ष स्थिति प्रज्ञप्त है।
पण्णत्ता। १८. वारणमंतराणं देवाणं जहणणं १८. वान-व्यन्तर देवों की जघन्यतः दस
दस वाससहस्साई ठिई पण्णता । हजार वर्ष स्थिति प्रजप्त है । १६. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्गइ- १९. सौधर्म-ईशान-कल्प में कुछेक देवों
याणं देवाणं दस पलिग्रोवमाइंठिई की दस पल्योपम स्थिति प्रज्ञप्त है।
पणत्ता। २०.बंभलोए कप्पे देवाणं उक्कोसेणं २०. ब्रह्मलोक-कल्प में देवों की उत्कृष्टतः
दस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । दस सागरोपम स्थिति प्रज्ञप्त है । २१. लतए कप्पे देवाणं जहण्णणं दस २१. लान्तक कल्प में देवों की जघ यतः/
सागरोवमाई ठिई पण्णता। न्यूनतः दस सागरोपम स्थिति प्रज्ञप्त
२२. जो देव घोष, मुघोष, महाघोष,
नन्दिघोष, सुस्वर, मनोरम, रम्य, रम्यक, रमणीय, मंगलावर्त और ब्रह्मलोकावतंसक विमान में देवत्व से उपपन्न हैं, उन देवों की उत्कृष्टतः दस सागरोपम स्थिति प्रज्ञप्त है ।
२२. जे देवा घोसं सुघोसं महाघोसं
नंदिघोसं सुसरं मणोरमं रम्म रम्मगं रमरिणज्जं मंगलावत्तं . बंभलोगवसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्को'सेणं दस सागरोवमाई ठिई । पण्पता। २३. ते गं देवा दसण्हं अद्धमासाणं
पारगमति वा पारणमंति वा ऊस
संति वा नीससंति वा। २४. तेसि गं देवाणं दसहि वाससह- ___ स्सेहि आहारठे समुप्पज्जइ। २५. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे दहि भवग्गहणेहि सिभिस्संति बुझिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति।
२३. वे दस अर्घमासों/पक्षों में पान/
आहार लेते हैं, पान करते हैं, उच्छ -
वास लेते हैं, निःश्वास छोड़ते हैं । २४. उन देवों के दस हजार वर्ष में
आहार का अर्थ समुत्पन्न होता है।
२५. कुछेक भव-सिद्धिक जीव हैं, जो दस •
भव ग्रहणकर सिद्ध होंगे, वुद्ध होंगे, मुक्त होंगे, परिनित होंगे, सर्वदुःखान्त करेंगे।
समवाय-सुत्तं
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समवाय-१०