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६. हेछिमगेविज्जयारणं देवाणं
एक्कारसुत्तरं गेविज्जविमाणसतं : भवइति मक्खायं ।
६. अधस्तन अवेयक देवों के विमान एक
सौ ग्यारह है-ऐसा पाख्यात है।
७. मंदरे णं पव्वए घरणितलामो सिहरतले एक्कारसभागपरिहारणे उच्चत्तणं पण्णत्ते।
७. मन्दर-पर्वत घरणीतल से शिवरतल तक ऊँचाई की अपेक्षा ग्यारहवें भाग से परिहीन/न्यूनतर प्राप्त है।
६.इमोसे गं रयणप्पहाए पुढवीए
प्रत्येगइयाणं नेरइयाणं एक्कारस पलिनोवमाई ठिई पण्णता।
८. इस रत्नप्रभा पृथ्वी पर कुछेक नैरयिकों की ग्यारह पल्योपम स्थिति प्रज्ञप्त है।
६. पंचमाए पुढवीए प्रत्येगइयाणं
नेरइयाणं एक्कारस सागरोवमाइं ठिई पण्णता।
६. पांचवीं पृथिवी [ धूमप्रभा ] पर
कुछेक नरयिकों की ग्यारह सागरोपम स्थिति प्रजप्त है।
१०. कुछेक असुरकुमार देवों की ग्यारह
पल्योपम स्थिति प्रजप्त है।
१०. असुरकुमाराणं देवाणं प्रत्येगइ-
यारणं एक्कारस पलिनोवमाई
ठिई पण्णता। ११. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु प्रत्येगइ-
याणं देवारणं एक्कारस पलिग्रोवमाई ठिई पण्णता ।
११. सौधर्म-ईशान कल्प में कुछेक देवों
की ग्यारह पल्योपम स्थिति प्राप्त
१२. लतए कप्पे प्रत्येगइयाणं देवाणं
एक्कारस सागरोवमाई लिई पण्णत्ता।
१२. लान्तक कल्प में कुछेक देवों की
ग्यारह सागरोपम स्थिति प्राप्त है।
१३. जे देवा बंमं सुबमं बंभावतं
बंभप्पन बंभकतं बंभवण्णं बंभलेसं बंभज्झयं बंसिंग बंभसिलैं बंभकूर बभुत्तरवडेंसगं विमाएं देवताए उववण्णा, तेसि गं देवारणं उकोसेणं एक्कारस सागरोवमाई ठिई पण्णता।
१३. जो देव ब्रह्म, मुब्रह्म, ब्रह्मावर्त, ब्रह्म
प्रभ, ब्रह्मकान्त, ब्रह्मवर्ण, ब्रह्मलेग्य, ब्रह्मध्वज, ब्रह्माएंग, ब्रह्ममृप्ट, ब्रह्मकूट और ब्रह्मोत्तरावतंसक विमान में देवत्व से उपपन्न है, उन देवी को उत्कृष्टतः ग्यारह नागरोपम स्थिति प्राप्त है।
गमवाय-११.
समवाय-सुत्तं