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२०. ते णं देवा पंचण्हं अद्ध नासारणं
पारगमंति वा पारणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा ।
२०. वे देव पाँच अर्धमामों/पक्षों में आन/
आहार लेते हैं, पान करते हैं, उच्छ - वास लेते है, निःश्वास छोड़ते हैं ।
२१. तेसि रणं देवाणं पंचहि वाससह-
स्सेहिं आहारट्टे समुप्पज्जइ ।
२१. उन देवों के पाँच हजार वर्ष में
आहार की इच्छा समुत्पन्न होती है ।
२२. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे पंचहिं भवग्गणेहि सिन्झिस्संति बुझिसंति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइसंति सव्वदुक्खारणमंतं करिस्संति ।
२२. कुछेक भव सिद्धिक जीव हैं, जो
पाँच भव ग्रहणकर सिद्ध होंगे, वुद्ध होंगे, मुक्त होंगे, परिनिवृत होंगे, मर्वदुःखान्त करेंगे।
समवाय-मुत्तं
• समवाय-५