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११. चउत्थीए पुढवीए प्रत्येगइयाणं
नेरइयाणं अट्ठ सागरोवमाई ठिई पण्णता।
११. चौथी पृथिवी [पंकप्रभा] पर कुछेक
नरयिकों की आठ सागरोपम स्थिति प्रज्ञप्त है।
१२. कुछेक असुरकुमार देवों की पाठ
पल्योपम स्थिति प्रज्ञप्त है।
१२. असरकुमाराणं देवाणं प्रत्येगइ-
याणं, अट्ठ पलिनोवमाई ठिई
पण्णत्ता। १३. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थे-
गइयाणं देवाणं अट्ठ पलिग्रोव- माई लिई पण्णत्ता।
१३. सौधर्म-ईशान कल्प में कुछेक देवों
की आठ पल्योपम स्थिति प्रज्ञप्त है ।
१४. ब्रह्मलोक कल्प में कुछेक देवों की
आठ सागरोपम स्थिति प्राप्त है ।
१४. बंभलोए कप्पे प्रत्येगइयाणं देवाणं
अट्ठ सागरोवमाई ठिई पण्णता। १५. जे देवा अच्चि अच्चिमालि
वइरोयणं पभंकर चंदामं सूराम सुपइहामं अग्गिच्चामं रिकामं अरुणामं अरुणुत्तरवडेंसगं विमाणं देवताए उववण्णा , तेसि गं देवाणं उक्कोसेरणं अट्ठ सागरो
वमाई ठिई पण्णत्ता. १६. ते गं देवा अट्ठण्हं प्रद्धमासाणं
पारणमंति वा पारणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा।
१५. जो देव अर्चि, अर्चिमाली, वैरोचन,
प्रभंकर, चन्द्राभ, सूराम, सुप्रतिष्ठाभ, अग्नि-अाभ, रिण्टाभ, अरुणाम और अनुत्तरावतंसक विमान में देवत्व से उपपन्न हैं, उन देवों की उत्कृष्टतः आठ सागरोपम स्थिति प्रज्ञप्त है ।
१६. वे देव पाठ अर्घमासों/पक्षों में आन/
आहार लेते हैं, पान करते हैं, उच्छवास लेते हैं, निःश्वास छोड़ते हैं ।
१७. उन देवों के आठ हजार वर्षों में
आहार की इच्छा समुत्पन्न होती है ।
१७. तेसि गं देवाणं अहि
वाससहस्सेहिं आहारठे. समु. पज्जइ... . . . १८. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे ___अहि भवग्गहणेहि सिझि• संति बुझिस्संति मुच्चिस्संति
पनिनिव्वाइसति सव्वदुक्खाणमंत
करिस्संति। समवाय-सुत्तं
१८. कुछेक भव सिद्धिक जीव हैं, जो
आठ भव ग्रहण कर सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, मुक्त होंगे, परिनित होंगे, सर्वदुःखान्तं करेंगे ।
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समवाय