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नौवां समवाय
नवमो समवायो १. नव बंमचेरगुत्तीग्रो पण्णत्तानो,
तं जहानो इत्योणं-पसु-पंडग-संसत्ताणि सिज्जासणाणि सेवित्ता भवइ । नो इत्थीणं कहं कहित्ता भवइ । नो इत्योरणं ठाणाई सेवित्ता भव। नो इत्थीरणं इंदियाई मणोहराई मणोरमाइंपालोइत्ता निभाइत्ता भव। नो पणीयरसमोई भवइ। नो पाणभोयरणस्स अइमायं प्राहारइत्ता भवइ । नो इत्थीणं पुन्वरयाई पुवकोलियाई सुमरइत्ता भवइ । नो सहाणवाई नो रूवाणवाई नो गंधाणुवाई नो रसाणवाई नो फासाणुवाई नो सिलोगाणुवाई। नो सायासोक्ख-पडिबद्ध यावि मवइ । २. नव बंभचेरअगुत्तीओ पण्णताओ, तं जहाइत्थी-पसु-पंडग-संसत्ताणि सिज्जासरणारिण सेवित्ता मवइ । इत्योणं कह कहित्ता भवइ । इत्थीणं ठाणाई सेवित्ता भवइ । इत्योणं इंदियाई मरणोहराई मरणोरमाई आलोइत्ता निझा- - इत्ता भवइ।
१. ब्रह्मचर्य-गुप्ति नौ प्रज्ञप्त हैं ।
जैसे कि[ब्रह्मचारी] स्त्री, पशु और नपुंसकसंसक्त शय्या तथा आसन का सेवन नहीं करता। स्त्रियों की कथा नहीं करता । स्त्रियों के स्थान का सेवन नहीं करता। स्त्रियों की मनोहर-मनोरम इन्द्रियों काअवलोकन-निरीक्षण नहीं करता। प्रणीत-रस-बहुल-भोजी नहीं होता । भोजन-पान का अतिमात्रा में प्राहार नहीं करता। स्त्रियों की पूर्व रति तथा पूर्व क्रीड़ाओं का स्मरण नहीं करता । न शब्दानुवादी, न रूपानुवादी, न गन्धानुवादी, न स्पर्शानुवादी और न ही श्लोकानुवादी होता है। शाता-सुख से प्रतिवद्ध भी नहीं होता।
२. ब्रह्मचर्य-अगुप्ति नौ प्रज्ञप्त हैं ।
जैसे कि[ब्रह्मचारी स्त्री, पशु और नपुसकसंसक्त शय्या तथा आसन का सेवन करता है। स्त्रियों की कथा करता है। स्त्रियों के स्थान का सेवन करता है।
स्त्रियों की मनोहर-मनोरम इन्द्रियों . का अवलोकन-निरीक्षण करता है ।
समवाय-मुत्तं
समवाय-8