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१६. बंमलोए कप्पे प्रत्येगइयाणं
देवाणं नव सागरोवमाई लिई पण्णत्ता।
१६. ब्रह्मलोक कल्प में कुछेक देवों की
नौ सागरोपम स्थिति प्रज्ञप्त है।
१७.जे देवा पम्हं सुपम्हं पम्हावत्तं
पम्हप्पहं पम्हकंतं पम्हवणं पम्हलेसं पम्हज्झयं पम्हसिंग पम्हसिट्ठ पम्हकूडं पम्हुत्तरवडेंसगं सुज्जं सुसुज्जं सुज्जावत्तं सुज्जपभं सुज्जकंतं सुज्जवणं सुज्जलेसं सुज्जज्झयं सुज्जसिंग सुज्जसिढें सुज्जकूडं सुज्जुत्तरवडेंसगं रुइल्लं रुइल्लावत्तं रुइल्लप्पमं रुइल्लकंतं रुइल्लवण्णं रुइल्ललेसं रुहल्लज्झयं रुइल्लसिंग रुइल्लसिट्ठं रुइल्लकूडं रुइल्लत्तरवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि गं देवाणं नव सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता।
१७. जो देव पक्ष्म, सुपक्ष्म, पक्ष्मावर्त,
पक्ष्मप्रभ, पक्ष्मकान्त, पक्ष्मवर्ण, पक्ष्मलेश्य, पक्ष्मध्वज, पक्ष्मभंग, पक्ष्मसृष्ट, पक्ष्मकूट, पक्ष्मोत्तरावतंसक तथा सूर्य, सुसूर्य, सूर्यावर्त, सूर्यप्रभ सूर्यकान्त, सूर्यवर्ण, सूर्यलेश्य, सूर्यध्वज, सूर्यशृंग, सूर्यसृष्ट, सूर्यकूट, सूर्योत्तरावतंसक, रुचिर, रुचिरावर्त, रुचिरप्रभ, रुचिरकान्त, रुचिरवर्ण, रुचिरलेश्य, रुचिरध्वज. रुचिरशृंग, रुचिरसृष्ट, रुचिरकूट और रुचिरोतरावतंसक विमान में देवत्व से उपपन्न हैं, उन देवों की नौ सागरोपम स्थिति प्रज्ञप्त है।
१८. ते णं देवा नवण्हं श्रद्धमासाणं
प्रागमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा।
१८. वे देव नौ अर्घमासों/पक्षों में आन/
आहार लेते है, पान करते हैं, उच्छ - वास लेते हैं, निःश्वास छोड़ते हैं ।
१६. तेसि गं देवाणं नहिं वास-
सहस्सेहि प्राहारठे समुप्पज्जइ। २०. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे
नहि भवग्गहर्णेहि सिन्झिस्संति बुझिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सम्वदुक्खाणमंतं करिस्संति।
१६. उन देवों के नौ हजार वर्ष में आहार __ की इच्छा समुत्पन्न होती है । २०. कुछेक भव-सिद्धिक जीव हैं, जो नौ
भव ग्रहण कर सिद्ध होंगे, वुद्ध होंगे, मुक्त होंगे, परिनित होंगे, सर्वदुःखान्त करेंगे।
समवाय-मुक्तं
समवाय-६