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१४. जे देवा सयंभु सयंभुरमणं घोसं
सुघोसं महाघोस किद्विघोसं वीरं सुवीरं वीरगतं वीरसेरिणयं वीरावत्तं वीरप्पमं वीरकंतं वीरवणं वीरलेसं वीरज्झयं वीरसिंग वीरसिटुं वीरकूडं वीरत्तरवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा, सि गं देवाणं उक्कोसेणं छ सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता।
१४. जो देव स्वयम्भू, स्वयम्भूरमण, घोप,
सुघोप, महाघोप, कृप्टियोष, वीर, सुवीर, वीरगत, वीरश्रेरिणक, वीरावर्त, वीरप्रभ, वीरकांत, वीरवर्ण, वीरलेश्य, वीरध्वज, वीरशृग, वीरसृष्ट, वीरकूट और वीरोत्तरावतंसक विमान में देवत्व से उपपन्न है, उन देवों की उत्कृप्टत: छह सागरोपम स्थिति प्रज्ञप्त है।
१५. ते णं देवा छण्हं श्रद्धमासाणं
प्रारणमंति वा पारणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा।
१५. वे देव छह अर्धमासों/पक्षों में आन/
आहार लेते हैं, पान करते है, उच्छ - वास लेते हैं, निश्वास छोड़ते हैं।
१६. तेसि रणं देवाणं हि वाससह-
स्सेहिं प्राहारळे समुप्पज्जई।
१६. उन देवों के छह हजार वर्ष में आहार
की इच्छा समुत्पन्न होती है ।
१७. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे
छहिं भवग्गहणेहि सिज्झिस्संति बुझिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ।
१७. कुछेक भव सिद्धिक जीव हैं, जो छह
भव ग्रहण कर सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, मुक्त होंगे, परिनिर्वृत होंगे, सर्वदुःखान्त करेंगे।
समवाय-सुत्तं
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समवाय-६