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१६. ते णं देवा चउण्हं श्रद्धमासागं आरणमंति वा पारणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा ।
१७. तेसि देवाणं चह वाससहसहि आहारट्ठे समुप्पज्जइ ।
१८. प्रत्येगइया भवसिद्धिया जीवा, जे चह भवग्गहणेहि तिज्भिस्संति बुज्झिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खारणमंतं करिस्तंति ।
समवाय-त्तं
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१६. वे देव चार अर्धमासों पक्षों में आन / आहार लेते हैं. पान करते हैं, उच्छ - वास लेते है. निःश्वास छोड़ते हैं ।
१७. उन देवों के चार हजार वर्ष में आहार की इच्छा समुत्पन्न होती है ।
१०. कुछेक भव-सिद्धिक जीव हैं, जो चार भव ग्रहण कर सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, मुक्त होंगे. परिनिर्वृत होंगे, सर्वदुःखान्त करेंगे ।
समवाय-४