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२१. जे देवा आभकरं पमंकरं
अभयरंपभंकरं चंदं चंदावत्तं चंदप्पभ चंदकंतं चंदवणं चंदलेसं चंदज्झयं चंदसिंग चंदसिट्ठ चंदकूडं चंदुत्तरवडेंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं तिण्णि सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।
२१. जो देव आमंकर, प्रभंकर, प्राभंकर
प्रभंकर, चन्द्र, चन्द्रावर्त, चन्द्रप्रभ, चन्द्रकान्त, चन्द्रवर्ण, चन्द्रलेश्य, चन्द्रध्वज, चन्द्रशृंग, चन्द्रसृष्ट, चन्द्रकूट और चन्द्रोत्तरावतंसक विमान में देवत्व से उपपन्न है, उन देवों की उत्कृष्टतः तीन सागरोपम स्थिति प्रज्ञप्त है।
२२. ते णं देवा तिण्ह अद्धमासाणं
पारगमंति वा पारणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा ।
२२. वे देव तीन अर्धमासों/पक्षोंमें आन/
आहार लेते हैं, पान करते हैं, उच्छ - वास लेते हैं, निःश्वास छोड़ते हैं ।
२३. तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं तिहि
वाससहस्सेहिं प्राहारळे समु- प्पज्जइ ।
२३. उन देवों के तीन हजार वर्ष में आहार
की इच्छा समुत्पन्न होती है।
२४. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा,
जे तिहिं भवग्गहणेहि सिज्झिस्संति बुझिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्व दुक्खारणमंतं करिस्संति ।
२४ कुछेक भव-सिद्धिक जीव हैं, जो तीन
भव ग्रहण कर सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, मुक्त होंगे, परिनिर्वृत होंगे, सर्वदुःखान्त करेंगे।
समवाय-सुत्त
समवाय-३