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पाठ 8
प्राकृत वाक्यों का संस्कृत एवं हिन्दी अनुवाद
क्र.
प्राकृत
1. जो एगं जाणेइ,
सो सव्वं जाणेइ |
2. जो सव्वं जाणेइ, | सो एगं जाणेइ । 3. बुहा बुहे पिक्खन्ति किं मुरुक्खो ?
4. णाई करेमि रोसं ।
5. धणं दाणेण सहलं
होइ |
6
समणा मोक्खाय
जएन्ते ।
7. बहिरो किमवि न सुणेइ ।
8. समणा नाणेण तवेण
सीलेण य छज्जन्ते ।
9. सावगो अज्जं
पंकएहिं जिणे
अच्चेज्ज |
10. जो कुढारेण | कट्ठाइं छिंदइ ।
11. पावो वहाइ जणं
संस्कृत
य एकं जानाति,
स सर्वं जानाति ।
य सर्वं जानाति, स एकं जो सब को जानता है,
जानाति ।
वह एक को जानता है । पण्डित पण्डितों को देखते हैं,
मूर्ख क्या ? (देखेगा ) ?
मैं गुस्सा नहीं करता हूँ ।
बुधा बुधान् प्रेक्षन्ते किं मूर्ख : ?
न करोमि रोषम् । धनं दानेन सफलं
धन दान द्वारा सफल होता है ।
भवति ।
श्रमणाः मोक्षाय यतन्ते । साधु मोक्ष के लिए
प्रयत्न करते हैं /
| बधिरः किमपि न श्रृणोति ।
श्रमणाः ज्ञानेन तपसा, शीलेन च राजन्ते । श्रावकोऽद्य पङ्कजैर्जिनान् अर्चति ।
1
जनः कुठारेण काष्ठानि छिनत्ति ।
पापः वधाय जनं धावति ।
हिन्दी
जो एक को जानता है,
वह सभी को जानता है ।
धाएइ ।
12. आयरिआ सीसेहिं सह आचार्याः शिष्यैः सह
विहरेइरे ।
विहरन्ति ।
२३
बहरा कुछ भी नहीं सुनता है । साधु ज्ञान से, तप से और शील से शोभते हैं । श्रावक आज कमलों द्वारा जिनेश्वरों की पूजा
करता है ।
मनुष्य कुल्हाड़े से लकड़े काटता है । पापी वध हेतु
मनुष्य की तरफ दौड़ता है । आचार्य शिष्यों के साथ विहार करते हैं ।